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नई दिल्ली। परिवार, एक अदृश्य स्पर्श जिसकी कल्पना मात्र से ही सुकून मिलता है। जहां रिश्तों की घनी छाया में सब कुछ सीखने को मिलता है। परिवार को समाज की सबसे छोटी इकाई माना जाता है, लेकिन ये कहना गलत नहीं कि परिवार समाज की सबसे मजबूत इकाई है, जो एक सभ्य समाज के निर्माण में मुख्य योगदान देती है। भारत में परिवार को प्रतिष्ठा, आदर्श और परंपरा तक से जोड़ा गया है।
अहमियत समझाने के लिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस
परिवार के महत्व का अंदाजा वर्तमान परिवेश से लगा सकते हैं, आज पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर जारी है, जिसकी वजह से अधिकांश लोग अपने परिवार के साथ हैं, तो कई ऐसे लोग भी हैं जो देश के अंदर या बाहर फंसे हुए हैं, मगर फिर भी वे अपने परिवार की सुरक्षा और कुशलता की कोशिश में लगे हुए हैं। आज के समय में दूर रहकर भी लोग अलग-अलग माध्यम से परिवार के साथ जुड़ सकते हैं। वर्तमान समय में बच्चों को परिवार की अहमियत समझाना बहुत जरूरी है ताकि कोरोना काल में वो खुद को अकेला न समझें।
परिवार के साथ मिलता सुकून
इससे पता चलता है कि पूरी दुनिया में कोई कितना ही आधुनिक क्यों न हो जाए, कितना भी व्यस्त हो जाए, लेकिन परिवार के साथ जो खुशी और सुकून है, उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। विश्व के लोगों कों परिवार की इसी अहमियत को समझाने के लिए हर साल 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाया जाता है। कोरोना महामारी को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2021 के लिए थीम ‘परिवार और नई प्रौद्योगिकियां’ रखी है।
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अपनों को खो चुके परिवारों की सहायता का आह्वान
परिवार के महत्व को बताते हुए परिवार दिवस के मौके पर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने देशवासियों से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सनातन आदर्श के अनुरूप आचरण करते हुए कोरोना में अपनों को खो चुके परिवारों की सहायता के लिए आगे आने का आह्वान किया है।
उपराष्ट्रपति ने विश्व परिवार दिवस के मौके पर जारी अपने संदेश में कहा, “आज विश्व परिवार दिवस है। परिवार ही हमारे समाज की मूलभूत इकाई है, जो हर परिस्थिति में हमें संबल देती है। महामारी के इस दौर में कई परिवारों ने अपनों को खोया है, उन्हें कठिनाई का सामना करना पड़ा है,वसुधैव कुटुंबकम के सनातन आदर्श के अनुरूप आगे बढ़ कर उन परिवारों की सहायता करें।”
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने के कारण
कहते हैं एक सभ्य समाज की रचना में परिवार की मुख्य भूमिका रहती है, इसलिए यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली ने 1993 को एक प्रस्ताव पास कर 15 मई को परिवार दिवस मनाने की घोषणा की।
दरअसल, बच्चे परिवार से ही रिश्तों की अहमियत, अच्छे, बुरे की समझ सीख पाते हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को परिवार के महत्व और इसके मूल्य के बारे में समझना है। साथ ही, उन मुद्दों को उजागर करना जो दुनिया भर में परिवारों को प्रभावित करते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दुनिया में कई देश अपने यहां परिवार दिवस या जागरूकता बढ़ाने के लिए वर्षों से प्रयास कर रहे हैं, जो परिवार के मुद्दों पर ध्यान देने पर आधारित है।
भारत में परिवार
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भारत में परिवार को दो प्रकार में बांट सकते हैं ,एकल परिवार और संयुक्त परिवार। प्राचीन काल से ही भारत ने संयुक्त परिवार की धारणा अपनाई है। हमारे देश में परिवार को मर्यादा और आदर्श की परंपरा से जोड़ा गया है, जहां एक छत के नीचे अनगिनत रिश्ते मिलते हैं, जो लाख मतभेद होने पर भी रिश्ते को स्नेह से सींच कर जीवंत बनाते हैं। भारत में जितना परिवार का महत्व है, उतना शायद ही किसी अन्य देश में है। हालांकि मेट्रो शहरों में बड़ी-बड़ी चमचमाती बिल्डिंगों में एकात्मक परिवार ही नजर आते हैं, लेकिन आज भी गांव में पांच-पांच पीढ़ियां एक साथ रहती हुई नजर आ सकती हैं, जहां रिश्तों की बगिया हरदम गुलजार रहती है। संयुक्त परिवार की इसी व्यवस्था की वजह से आज भी भारत की नींव ग्रामीण ही हैं।
गाँव में रहते हैं 13.7 करोड़ परिवार
वर्ष 2001 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में कुल 191,963,935 हैं यानि करीब 19 करोड़। वहीं 2001 में 19 करोड़ में से 13.7 करोड़ परिवार ग्रामीण भारत में रहते हैं, जबकि 5.3 करोड़ परिवार शहरों में निवास करते हैं। हालांकि 2011 में की जनगणना में संख्या बढ़कर 24.88 करोड़ हो गई है। लेकिन 12.97 करोड़ परिवार एकल परिवार हैं । हालांकि शहरों में संयुक्त परिवार का आंकड़ा बढ़ा है।