
राजधानी लखनऊ को लेकर सरकार और पुलिस प्रशासन लगातार सुरक्षित शहर होने के दावे करते हैं, लेकिन बीती 20 अगस्त 2025 की रात घटी एक वारदात ने इन दावों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। इस रात न सिर्फ एक पत्रकार को ऑटो चालकों के गिरोह ने घेरा, बल्कि धमकाने और मारपीट की कोशिश भी की। हालाँकि, पत्रकार की सूझबूझ और समय पर पहुँची 112 पुलिस ने स्थिति को संभाल लिया और उसकी तथा उसकी पत्नी की जान बच गई।
यह घटना राजधानी में सक्रिय ऑटो चालकों के संगठित गिरोह की तरफ़ इशारा करती है, जो छोटी-छोटी बातों पर लोगों से उलझ जाते हैं और फिर उन्हें घेरकर हमला कर देते हैं। पत्रकार अनुपम ने अमर भारती से बातचीत में इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया।
घटना कैसे घटी?
पत्रकार अनुपम ने बताया कि घटना की शुरुआत तब हुई जब वह अपनी पत्नी का एमआरआई गोमतीनगर स्थित एक डायग्नोस्टिक सेंटर से कराकर वापस घर लौट रहे थे। समय देर रात का था और सड़कें लगभग सुनसान थीं।
“मैं कार चला रहा था। जैसे ही मैं पिकप मोड़ के पास पहुँचा, अचानक एक ऑटो (UP-32MN-3122) मेरी गाड़ी के सामने खतरनाक अंदाज में आ गया। उसने अपशब्द कहे और आगे बढ़ गया। शुरुआत में लगा कि यह कोई सामान्य ड्राइविंग विवाद है, लेकिन मामला इससे कहीं आगे निकलने वाला था।”
अनुपम ने बताया कि उन्होंने पॉलिटेक्निक चौराहे तक उस ऑटो का पीछा किया और रोकर चालक से सवाल किया कि उसने ऐसा क्यों किया। यहीं से घटनाक्रम खतरनाक मोड़ ले लिया।
गिरोह का हमला और बढ़ता खतरा
पत्रकार का कहना है कि जैसे ही उन्होंने ऑटो चालक को रोका, चालक ने तुरंत फोन पर अपने साथियों को बुला लिया। कुछ ही मिनटों में करीब 10–12 लोग मौके पर पहुँच गए और उन्हें घेर लिया।
“शुरुआत में मैंने सोचा कि मामला सिर्फ बहस तक ही सीमित रहेगा, लेकिन जब इतने लोग एक साथ मुझे धमकाने लगे तो समझ गया कि यह कोई सामान्य घटना नहीं है। उनका मकसद मुझे डराना, पीटना और शायद लूटना भी था,” अनुपम ने बताया।
उनके अनुसार, राजधानी में ऑटो चालकों के ऐसे संगठित गिरोह सक्रिय हैं जो मामूली विवाद को बहाना बनाकर लोगों पर हमला कर देते हैं।
धर्म का सहारा लेकर धमकाना सबसे पीड़ादायी
इस पूरी घटना के दौरान आरोपी चालक ने खुद को मुसलमान बताते हुए जान से मारने की धमकी दी। इस बात ने पत्रकार को गहराई तक चोट पहुँचाई।
“मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का हुआ कि उसने धर्म का नाम लेकर धमकाने की कोशिश की। धर्म का सहारा लेकर डराना गलत है और इससे पूरे समाज की छवि खराब होती है। अगर वह अपनी गलती मानकर माफी मांग लेता तो मैं उसे माफ कर देता, लेकिन अपराधी मानसिकता के लोगों से यह उम्मीद करना व्यर्थ है,” अनुपम ने कहा।
पुलिस को दी सूचना और समय पर मिली मदद
स्थिति को संभालना मुश्किल हो रहा था, तभी अनुपम ने तत्काल 112 पर कॉल किया। उन्होंने पुलिस को घटना की जानकारी दी (Event ID P20082525863, PRV LKW4919)।
“112 पुलिस ने तुरंत मुझसे संपर्क किया और कुछ ही देर में मौके पर पहुँच गई। पुलिस ने आरोपी चालक को पकड़ लिया और इस तरह मेरी और मेरी पत्नी की जान बच गई। अगर पुलिस समय पर न पहुँचती तो न जाने क्या हो जाता,” अनुपम ने बताया।
पत्रकार ने इस मौके पर 112 पुलिस की तत्परता और पेशेवराना रवैये की सराहना की।
मुंशी पुलिया चौकी पुलिस का रवैया सवालों के घेरे में
जहाँ एक ओर 112 पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की, वहीं स्थानीय पुलिस का रवैया निराशाजनक रहा। अनुपम का आरोप है कि मुंशी पुलिया चौकी पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से बचने की कोशिश की और उल्टा उन्हें ही मामले में फँसाने की धमकी दी।
“मुंशी पुलिया चौकी पुलिस ने पहले तो कहा कि हम तुम्हारे खिलाफ ही मुकदमा लिख देंगे। लेकिन मैंने उनकी बात रिकॉर्ड कर ली, तब जाकर वे मेरी रिपोर्ट दर्ज करने और आरोपी को थाने ले जाने के लिए तैयार हुए। यह रवैया बेहद दुखद है,” अनुपम ने बताया।
लखनऊ की सुरक्षा पर उठे सवाल
इस घटना ने लखनऊ की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। राजधानी जैसी जगह पर यदि संगठित गिरोह इस तरह से आम लोगों को घेर सकते हैं तो आम जनता की सुरक्षा किस हद तक खतरे में है, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
पत्रकार अनुपम का कहना है कि “यह घटना सिर्फ मेरे साथ नहीं हुई, यह किसी भी नागरिक के साथ हो सकती है। राजधानी में इन गिरोहों का सक्रिय होना बेहद चिंताजनक है। सरकार और पुलिस को इस पर कड़ा कदम उठाना होगा।”
कड़ी कार्रवाई की मांग
पत्रकार ने गाजीपुर थाना पुलिस और पुलिस कमिश्नरेट लखनऊ से मांग की है कि आरोपी चालक और उसके गिरोह के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि आगे कोई और व्यक्ति इनकी गुंडागर्दी का शिकार न बने।
“मैं चाहता हूँ कि इस आरोपी पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो, ताकि बाकी लोग भी सबक लें और राजधानी को असुरक्षित न बना सकें,” अनुपम ने कहा।
जनता के लिए अलार्म
यह घटना राजधानी लखनऊ सहित पूरे प्रदेश के नागरिकों के लिए अलार्म है। देर रात सफर करने वाले लोग, खासकर परिवार के साथ निकलने वाले, सतर्क रहें और किसी भी संदिग्ध स्थिति में तुरंत पुलिस को सूचना दें।
पत्रकार ने भी आम लोगों से अपील की कि वे ऐसे मामलों में चुप न रहें और अपराधियों के खिलाफ खुलकर आवाज़ उठाएँ।
लखनऊ की 20 अगस्त की यह खौफनाक रात सिर्फ एक पत्रकार की आपबीती नहीं है, बल्कि यह उन संगठित गिरोहों की असलियत भी उजागर करती है, जो शहर की सड़कों पर घूमकर लोगों को निशाना बनाते हैं। इस घटना ने साफ कर दिया है कि अपराधियों का हौसला राजधानी में किस कदर बुलंद है।
फिलहाल, 112 पुलिस की तत्परता से एक बड़ा हादसा टल गया, लेकिन सवाल अब भी बरकरार है—क्या राजधानी लखनऊ की सड़कों पर आम नागरिक सुरक्षित है?