सामूहिक नरसंहार : हिंदुस्तान के इतिहास का वह काला दिन, जब हुई थी 1000 लोगों की हत्या

नई दिल्ली। 13 अप्रैल 1919 का  वो  काला दिन जो हर भारतीय को हमेशा के लिए एक गहरा जख़्म दे गया। जलियाँवाला बाग़  में जो नरसंहार हुआ था, उसे  भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है, जिसके चलते “अंग्रेजी राज” का क्रूर और दमनकारी चेहरा सबके सामने लाया, जिसने सम्पूर्ण मानव जाति को हिलाकर रख दिया। 

पंजाब ने झेला सबसे ज़्यादा क्रूर उत्पीड़न

कई लोगों का मानना था कि इस घटना के बाद से ही भारत पर शासन करने के लिए अंग्रेजों की जो नैतिकता थी उसका अंत हो गया। इस  घटना का प्रभाव भारतीयों पर इतना पड़ा कि वो सीधे तौर पर एकजुट राजनीति के लिए प्रेरित हुए। जिसका परिणाम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति के रूप में देखा गया। यहां पर जानना दिलचस्प है कि पंजाब को अंग्रेजी हुकूमत का गढ़ माना जाता था। इस कारण पंजाब ने ही सबसे ज़्यादा प्रदर्शन और क्रूर उत्पीड़न झेला था। जहां न जाने कितने ही लोग मारे गए।  

एक हज़ार लोगों की  हुई थी मौत

घटना कुछ इस प्रकार हुई कि 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, और जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद क़रीब 25 से 30 हज़ार लोगों पर गोलियां चलवाने का आदेश दे दिया। यह जो आदेश दिया गया था इसकी किसी को भी पूर्व चेतावनी नही दी गई थी। ये गोलीबारी क़रीब दस मिनट तक बिना रुके होती रही।  जनरल डायर के आदेश के बाद सैनिकों ने क़रीब 1650 राउंड गोलियां चलाईं। गोलियां चलाते-चलाते जब थक चुके थे तब तक  379 ज़िंदा लोग लाश में तब्दील हो चुके थे। ऐसा कहा जाता है कि इस घटना से  लगभग  एक हज़ार लोगों की मौत हुई थी। 

इस हत्याकांड को 102 वर्ष हुए पूरे

जलियांवाला बाग हत्याकांड को  102 वर्ष बीत चुके है। लेकिन  यह घटना आज भी झंझोर कर रख देती है जब पता चलता है कि कैसे  13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के पर्व पर पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी सैनिकों ने गोलियां चलाकर बूढ़ों, महिलाओं, पुरुषों और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *