लखनऊ नीला हुआ — मायावती की रैली बनी हाल के वर्षों का सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन, सपा और भाजपा में बढ़ी हलचल

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने सोमवार को कांशीराम स्मारक पर आयोजित अपनी रैली से उत्तर प्रदेश की सियासत में फिर से नई ऊर्जा भर दी। बिहार चुनाव से पहले हुई इस विशाल जनसभा ने राजधानी लखनऊ को नीले रंग में रंग दिया। पार्टी ने दावा किया कि रैली में करीब 5 लाख कार्यकर्ता और समर्थक शामिल हुए — यह आंकड़ा बसपा के हाल के इतिहास की सबसे बड़ी भीड़ मानी जा रही है।

राजधानी की सड़कों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक इस रैली की चर्चा है। बसपा की यह “शक्ति प्रदर्शन रैली” न केवल मायावती के राजनीतिक पुनरुत्थान की घोषणा थी, बल्कि समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों के लिए नई चुनौती के रूप में उभरी।

इस रैली में मायावती ने अपने पारंपरिक दलित वोट बैंक के साथ मुस्लिम समाज की भागीदारी पर विशेष जोर दिया। मंच से उन्होंने सीधे तौर पर भाजपा और सपा दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि “बहुजन समाज को अब धोखे की राजनीति नहीं, सत्ता में हिस्सेदारी चाहिए।” विशेष रूप से मुस्लिम समाज की उल्लेखनीय मौजूदगी ने सपा के भीतर हलचल बढ़ा दी है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर बसपा मुस्लिम मतदाताओं का एक हिस्सा अपनी ओर खींचने में सफल हो जाती हैं, तो सपा के “MY (मुस्लिम-यादव)” समीकरण में सेंध लग सकती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बसपा की यह रैली 2010 और 2016 के बाद की सबसे बड़ी भीड़ वाली रैली रही। 2010 में मायावती के शासनकाल के दौरान लखनऊ “नीले झंडों” से पटा था, जबकि 2016 में लगभग पांच लाख लोगों की मौजूदगी ने राजधानी की तस्वीर बदल दी थी। अब, नौ अक्टूबर 2025 की यह रैली उसी स्तर की भीड़ और ऊर्जा लेकर आई है। “टाइम्स नाउ हिंदी” और “हरिभूमि” जैसी मीडिया रिपोर्टों ने इसे बसपा की हाल के वर्षों की सबसे बड़ी रैली करार दिया है।

कांशीराम स्मारक से लेकर अवध चौराहा, तेलीबाग, तिकुनिया और आलमबाग तक यातायात ठप रहा। ट्रैफिक पुलिस ने एडवाइजरी जारी कर लोगों से गैर-जरूरी यात्रा से बचने की अपील की। बसपा कार्यकर्ताओं ने पूरे शहर में “जय भीम, जय भारत” और “महामाया ज़िंदाबाद” के नारे लगाते हुए शक्ति प्रदर्शन किया। रैली स्थल पर मायावती के भाषण के दौरान भीड़ ने जोश और अनुशासन दोनों का परिचय दिया।

रैली के बाद सपा और भाजपा दोनों खेमों में राजनीतिक मंथन शुरू हो गया है। सपा को यह डर सता रहा है कि मुस्लिम वोट बैंक का हिस्सा बसपा की ओर खिसक सकता है, जबकि भाजपा को आशंका है कि दलित वर्ग में बसपा फिर से सक्रिय होकर उनकी सामाजिक इंजीनियरिंग को कमजोर कर सकती है। राजनीतिक विश्लेषक डॉ. ए.के. मिश्रा के अनुसार, “यह रैली मायावती के लिए राजनीतिक पुनरुत्थान की घोषणा है। उन्होंने साबित किया है कि बसपा का कैडर आज भी जिंदा है और अनुशासित है।”

अपने भाषण में मायावती ने कहा कि बसपा न तो किसी गठबंधन की मोहताज है और न ही किसी के विरोध में बनी है। उनका लक्ष्य “समानता, सम्मान और शासन में भागीदारी” पर आधारित राजनीति को मजबूत करना है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बसपा अब केवल दलितों की पार्टी नहीं बल्कि सभी कमजोर, शोषित और वंचित वर्गों की आवाज बनेगी।

मायावती की यह “महामाया रैली” केवल राजनीतिक आयोजन नहीं बल्कि एक प्रतीकात्मक पुनरुत्थान है। इसने यह साबित कर दिया कि बहुजन राजनीति अभी भी उत्तर प्रदेश के केंद्र में है। 2016 के बाद पहली बार बसपा ने इतनी बड़ी संख्या में समर्थकों को एकजुट किया, जिससे न केवल सपा का “MY समीकरण” डगमगाया है बल्कि भाजपा की भी रणनीति पर असर पड़ने की संभावना है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह भीड़ वोटों में तब्दील होती है या नहीं, लेकिन इतना तय है कि इस रैली ने लखनऊ की राजनीति में फिर से “नीली लहर” दौड़ा दी है।