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उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है- Amar Bharti Media Group विशेष

उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

  • वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है।
  • उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है।।
  • इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का।
  • उधर लाखों में ग़ांधी जी के चेलों की कमाई है।।

गाजियाबाद. गाजीपुर बॉर्डर पर कुछ किसान अदम गोंडवी की इन पक्तियों के साथ अपनी व्यथा और नारे को आवाज दे रहे हैं। पहले से ही दिल्ली की सर्दी से जान को आफत  थी, अब आसमान से गिरती ठंडे पानी की बौछारें आन्दोलन और जीवन दोनों के लिए दुश्वारियां पैदा कर रही हैं। 56 साल के जियाउल हक सम्भल से आए हैं। लगभग 100 किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे जियाउल को सरकार से कोई उम्मीद नहीं है। जियाउल हक कहते हैं ”मोदी सरकार अपना निर्णय नहीं बदलने वाली है, लेकिन हम भी आन्दोलन स्थल से हटने को तैयार नहीं हैं।

हम पूरी तैयारी के साथ आए हैं, चाहे बारिश हो, ठंड  पड़े या ओले हम यहीं डंटे रहेंगे।” जाहिर है किसान अब यह मानने लगे हैं कि सरकार उनकी सभी मांगे मानने वाली नहीं है। ऐसे में समस्या का समाधान कैसे होगा, यह यक्ष प्रश्न है। 60 वर्ष के राजबीर सिंह फुगाना कहते हैं  ”हमने मोदी को  वोट दिया था। उसे चाहिए कि वह हमारी बात सुने न कि अडानी और अम्बानी की। अडानी, अम्बानी को किसानों के बारे में क्या पता। राजनाथ सिंह किसानों का बेटा है, चौधरी अजीत सिंह किसानों का बेटा है उनसे मोदी बात कर किसानों की समस्या का समाधान कर सकता है।”

यूपी गेट पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को अब कई मोर्चे पर लड़ना पड़ रहा है। ठण्ड और बरसात के बीच सभी किसानों के रहने, खाने और सोने की समस्या अचानक ही बड़ी हो गई है। जाहिर है दिल्ली की सर्दी न सिर्फ  डराने लगी है अपितु अब जानलेवा भी हो गई है।

सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक सात दौर की वार्ता हो गई है लेकिन अगर कोई चीज हासिल नहीं हुई तो वह है ‘आपसी सहमति। अब तक 40 से अधिक किसानों की अलग-अलग बार्डर पर मौत हो चुकी है।

अत्यधिक ठंड के चलते बुजुर्गों की जान को खतरा पैदा हो गया है। यही वजह है कि सरकार किसानों से लगातार यह अपील कर रही है कि बुजुर्गों, बच्चों और महिलाओं को आन्दोलन से दूर रखा जाए, लेकिन किसान ऐसा करने को तैयार नहीं हैं। किसान जिद में हैं और हर तरह की कुर्बानी देने को तैयार हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों की जिन्दगी दांव पर लगाना कहां तक उचित है।