चुपचाप किंतु मजबूती से बदलता ग्रामीण भारत


#एक लम्बे अंतराल के बाद, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित कामन रिव्यू मिशन (सीआरएम) के तहत मुझे ग्रामीण इलाको में जाने का मौका मिला। इस दौरान सीआरएम की टीमों ने 8 प्रदेशों में फैले  21 जिलों के 120  गांवों में जाने का मौका मिला। बाद में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी जिसके कुछ बिंदु इस प्रकार से हैं। सभी राज्यों में जो सबसे बड़ा बदलाव नजर आया वह था महिला सशक्तिकरण। स्वयं सहायता समूह आंदोलन के तहत डीएवाई-एनआरएलएम ने सात करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं को एकजुट करते हुए 65 लाख स्वयं सहायता समूह गठित किए। निश्चित रुप से महिलाओं में उद्दमिता से जुड़ा नया  उत्साह और गौरव देखने को मिला वह काफी सुखद रहा। इन सभी समूहों को उन्हीं के बीच की एक महिला जिसे  सखी कहा जाता है संचालित करती है। इन समूहों में किसी भी एसी संस्था से कहीं ज्यादा जिम्मेदारी नजर आयी जो सरकार के लोगों द्वारा चलायी जाती है। तीन लाख छतीस हजार करोड़ रुपये के बैंक कर्ज में से इन समूहों का जो एनपीए हुआ मतलब जो कर्ज ये वापस नहीं कर पाये वह 2.2 फीसद रहा। स्वंय-सहायता समूहों मे वह क्षमता दिखी जो बदलते ग्रामीण सामाजिक आर्थिक परिदृश्य में स्थानीय प्रशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकते हैं।

दूसरा बदलाव था योजनाओं के क्रियान्वन में भ्रष्टाचार की कमी। तकनीक के व्यापक इस्तेमाल ने योजनाओं को ज्यादा कारगर और भ्रष्टाचार मुक्त बनाया। ग्रामीण निकायो और लाभार्थियों के खातो में सीधे धनराशि स्थानांतरित करने से बिचौलियों की भूमिका खतम हुई।

मनरेगा औऱ प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत सृजित सभी सम्पतियों की व्यापक जिओ टैगिंग यानि उनकी तस्वीरों औऱ वीडियों को सोशल मीडिया में डाल देने से पहले जैसी खामियों से बचा जा सका। पहले इसी के लिए एक से ज्यादा बार भुगतान कर दिए जाते थे। तकनीक के इस्तेमाल से डीबीटी से एक कदम और आगे बढकर साफ्टवेयर के जरिये भौतिक कार्यों का आकलन भी संभव हुआ। इससे आंकलन औऱ खर्च की गुणवत्ता बढी। सामाजिक आर्थिक जातिगणना एसईसीसी के इस्तेमाल से लाभार्थियों का सही चयन हुआ और योजनाओं के क्रियान्वन के प्रति विश्वसनीयता बढी। भाई भतीजावाद जैसी शिकायतें भी धीरे धीरे कम हुई। इससे पहले लाभार्थियों के चयन में गलतियों की शिकायतें मिला करती थी।

तीसरा बडा बदलाव ग्रामीण इलाकों में बुनियादी ढांचे से संबधित है जिसमें  मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास, वित्त आयोग अनुदान, प्रधानमंत्री ग्राम सडक जैसी योजनाओं का बड़ा योगदान है। बड़े स्तर पर बदलाव हुए है योजनाओं के क्रियान्वन में गुणवत्ता से जुड़े कई महत्वपूर्ण बदलाव भी हुए है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण का सबसे ज्यादा असर हुआ है। पिछले चार वर्षो में इस योजना के तहत एक करोड़ 54 लाख से भी ज्यादा मकान बनाए गये। पहले एक मकान जो लगभग एक साल में बनकर तैयार होता था अब 120 दिनों से भी कम में बनने लगा। महात्मा गांधी नरेगा योजना में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को प्रमुखता दी गयी। मसलन तालाबों और नहरों का निर्माम कराया गया, भूक्षरण को रोकने तथा नदियों को आपस में जोड़ने जैसे काम भी हुए।

प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सम्पर्क मार्ग बनाए गये। वर्ष 2011-2013 के बीच जहां सड़क बनाने का औसत 80 किलोमीटर प्रतिदिन था वहीं वर्ष 2018-2019 मे़ यह बढकर 134 किलोमीटर प्रतिदिन हो गया। ढाई सौ लोगों से ज्यादा की आबादी वाले लगभग सभी मजरे पक्की सड़को से जोड दिए गये। ग्रामीण सड़को को लोगो की आमदनी में इजाफे का एक बड़ा कारण माना जाता है। आने वाले दिनों में इसेक बदलाव नजर आयेंगे।

हालांकि स्वच्छ भारत मिशन की समीक्षा सीआरएम के दायरें में नहीं था लेकिन फिर भी स्वच्छता एक बड़े बदलाव के रुप में गांव में दिखी। ज्यादातर परिवारों के पास शौचालय दिखे जो इस्तेमाल में हैं। वित्त आयोग के अनुदान भी काफी महत्वपूर्ण साबित हुए। ग्राम पंचायतों ने इसके जरिए सड़को को सीमेंट, कंक्रीट अथवा इंटे बिछाकर पक्का किया और नालियां भी बनवाई। गांव में ज्यादा साफ सफाई दिखी जिसका असर स्वास्थय और पोषण पर पडेगा।

पारदर्शिता भी एक बहुत बड़े बदलाव के रुप में देखने को मिली। प्रधानमंत्री आवास योजना और राष्ट्रीय सामाजकि कार्यक्रम के तहत चुने गये लाभार्थियों के नाम पंचायत भवन की दीवारों पर लिखे दिखाई पड़े। जो लाभार्थी प्रतिक्षा सूची में थे उनके भी नामों का खुलासा किया गया था औऱ ये सारे रिकार्ड पंचायत के कार्यालय में उपलब्ध थे। इससे औऱ सूचना प्रौद्दोगिकी के जरिये सभी सूचनाओं को उजागर करने से काम काज में पारदर्शिता बढी है। सामाजिक आडिट योजना से भी फील्ड कर्मचारियों और पीआरआई की आम जनता के प्रति जवाबदेही बढी। यह एक नया अनुभव था कि किस तरीके से आडिट के दौरान गांव के लोगो ने  कर्मचारियों को सवालों के घेरे में खड़ा किया ।

निश्चित रुप से एसे कई क्षेत्र है जहां तमाम तरक्की हुई है। निचले स्तर पर कर्मचारियों की तैनाती और क्षमता निर्माण की ज़रुरत है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत सड़को के रखरखाव के लिए और धनराशि की ज़रुरत है। मनरेगा के तहत दी जाने वाली मजदूरी की भी समीक्षा होनी चाहिये। गांव में गरीब तथा सीमांत लोगों को उनके लिए चलाये जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी होनी चाहिये। इसको लेगर जागरुकता अभियान चलाने की ज़रुरत है। बैंको के दायरे  को भी औऱ बढाने की जरुरत है। कुछ नई योजनाओं जैसे आर अर्बन मिशन और एस ए जी वाई पर जोर दिया जाना चाहिये। कुछ इलाकों में बेशक एसईजीवाई के तहत बेहतर काम हुए है फिर भी यह योजना स्थानीय सांसद के पहल की मोहताज है।सीआरएम के बुहत से सुझाव राज्य सरकारों से जुड़े है और हम इस बात की उम्मीद करेंगे कि वे ग्रामीण भारत मे बदलाव की प्रक्रिया में और तेजी लाने के लिए आवश्यक कदम उठायेंगी।

अंत में सीआर एम के बारे में भी दो शब्द। यह अक्सर नहीं होता कि सरकारी मंत्रालय अथवा विभाग बाहरी लोगों को अपने कामकाज की समीक्षा के लिए बुलाएं और उनकी सिफारिशों पर गौर करें। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2016 में सलाना सीआरएम की व्यवस्था शुरु की थी और यह आज भी जारी है। बाहरी लोगों की बातों को सुनना औऱ खुलेपन का यह माद्दा शासन में एक बदलाव है। हम उम्मीद करते हैं कि अन्य विभाग औऱ राज्य सरकारें भी एसी ही परम्परा शुरु करेंगी।

-राजीव कपूर

(लेखक उतर प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त है और लेख में व्यक्त विचार उनके अपने है।)