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आरक्षण आर्थिक आधार पर हो, न कि धर्म, जाति आधारित.- Amar Bharti Media Group राष्ट्रीय, देश, नई दिल्ली नई दिल्ली

आरक्षण आर्थिक आधार पर हो, न कि धर्म, जाति आधारित.

क्यों देश के सारे राजनीतिक दल आरक्षण नीति के खिलाफ एकजुट होकर, देश के हर धर्म, जाति के उन लोगो तक , जो आर्थिक रूप से बहुत ही कमजोर हैं, को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने को तैयार क्यों नहीं हैं. राजनेता भी इंसान ही हैं. इंसान भी हर तरह के व्यवहार के होते हैं. राजनेता जनता द्वारा चुनकर एक सांसद के रूप में लोकतंत्र के मंदिर(संसद) में जनता के प्रतिनिधि के अधिकार से, जनता की समस्या को सरकार के सम्मुख रखना और नया कानून बनाने और संशोधन करने में अपने मत का प्रयोग करने का अधिकार होता है.

राजनीति एक समाजसेवा और देश प्रेम में समर्पित लोगो के लिए होनी चाहिए, न कि किसी भी अपराधी प्रवृत्ति के लोगो के लिए. अधिकतर लोग इसे देश सेवा की भावना से न लेकर, अपने करियर से जोड़कर देखते है. इसी कारण अधिकतर राजनेता देशहित न देख कर, अपने समुदाय विशेष और अपने राजनीतिक दल को ही प्राथमिकता देते हैं. राजनितिक दलों को सत्ता की लालसा में अपराधी प्रवृत्ति और अपराधी दोनों प्रकार के राजनेता को अपने दल में शामिल करने से कोई परहेज नहीं होता है.

आरक्षण आर्थिक आधार पर हो, न कि धर्म, जाति आधारित.

ऐसा बिल्कुल नहीं है कि राजनीतिक दलों में सारे राजनेता एक जैसे होते हैं, लेकिन अधिकतर राजनेताओ का राजनीति में प्रवेश सत्ता की लालसा के कारण ही होता है, जिस कारण से अच्छे राजनेताओ का राजनीतिक दलों में होने के बावजूद भी, वे अपने राजनीतिक दलों में अपराधी प्रवृत्ति और अपराधी दोनों प्रकार के राजनेता को शामिल होने से रोक नहीं पाते हैं.

जब ईमानदार राजनेता अपने दल में अपराधी प्रवृत्ति और अपराधी दोनों प्रकार के राजनेता के प्रवेश को नही रोक सकते, तो आप खुद ही सोचे कि क्या वे और उनके राजनीतिक दल देशहित में अपना सौ प्रतिशत योगदान दें पायेंगे. इन्ही कारणों से देश में किसी भी योजना और नीति को पूरी तरह से लोगो के हित में लागू नहीं किया जाता हैं.

हम सब जिम्मेदार नागरिको को भी अपने मताधिकार का पूरी ईमानदारी और समझदारी से प्रयोग करना चाहिए. जिससे देशहित में कार्य करने वाले नेता(जनता के प्रतिनिधि ) का चयन हो सके. देश की सभी प्रकार की समस्याओं के लिए राजनेता तो दोषी हैं ही, कहीं न कहीं इसमें हम सब नागरिको की भी गलती है, जो एक अच्छे नेता के चयन में गलती कर बैठते है. हम सब नागरिको को अपना निजी हित न देखते हुए, देशहित में अपने नेता का चयन करना होगा. अधिकतर लोग तो ऐसे होते हैं, जो सोचते है कि अगर हम अपने परिचित नेता को वोट देंगे, तो हमारे सारे निजी कार्य, बिना किसी सरकारी भाग दौड़ के आसानी से हो जायेंगे. लेकिन यह सरासर गलत है, सब नागरिक समान हैं. सबको ही सरकार की समान प्रक्रिया से होकर अपना कार्य करना चाहिए. तभी हम सही मायने में विकास की राह में चलेंगे.

आरक्षण का उद्देश्य, समाज में दलितों और पिछड़े वर्गो को देश के उच्च वर्गो के समान लाना था, क्यूंकि उनके साथ बहुत अत्याचार और भेदभाव हुआ था. जो बिलकुल गलत था. भीमराव अंबेडकर जी ने आरक्षण नीति को भविष्य में संतुलन बनाये रखने के लिए, इसे हमेशा के लिए लागू नहीं किया था. अब आरक्षण नीति में बदलाव की आवश्यकता है, जिसे राजनीतिक दलों द्वारा अपने वोट बैंक की राजनीति के डर से बदला नहीं जा रहा है. हम सब नागरिक समान हैं, मगर आज के समय में भी देहात में कई जगह दलितों और पिछड़े वर्गो के साथ भेदभाव होता है. उसके लिए सरकार को सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए. इसके विपरीत कई इस तरह के मामले भी उजागर होते हैं जिसमे एससी, एसटी एक्ट का दुरुप्रयोग कर समान्य वर्ग के लोगो का भी उत्पीड़न किया जाता है. भेदभाव चाहे किसी के साथ भी हो, उसके विरुद्ध सख्त से सख्त कानून की जरुरत है. जंहा तक नौकरी और शिक्षण संस्थाओ में आरक्षण की बात है, उसके लिए अब आर्थिक आधार पर आरक्षण की आवश्यकता है.

आरक्षण का लाभ तो एससी एसटी और ओबीसी के जरुरतमंद कैंडिडेट तक पहुंच ही नहीं पाता है, उनमे आर्थिक रूप से मजबूत और क्रीमी लेयर असली लाभ उठा लेते है. एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग में आईएएस और आईपीएस जैसी बड़ी सरकारी नौकरी करने वाले अधिकारियों के बच्चे भी इस एक्ट का पूरा उपयोग करते हैं. हम सब नागरिक समान हैं और सबका दर्द भी समान है, चाहे वो एससी, एसटी, ओबीसी और समान्य वर्ग हो. सभी वर्गो में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो की हालत बहुत ही ख़राब है. भारत में आर्थिक आधार पर आरक्षण, आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को आर्थिक रूप से मजबूत करने का कार्य करेगा. इसका लागू होना बहुत ही जरुरी है.

जहां तक आपसी भेदभाव का सवाल है, उसके लिए सख्त से सख्त कानून लाना जरुरी है, अब समय बदल गया है, हर क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव होता है, जिसमे कार्यवाही के नाम पर केवल खानापूर्ति ही होती है. सरकारी मंत्रालयों और किसी भी सरकारी आदि विभागों में कार्यरत हो जाने पर, अधिकतर कार्यरत सरकारी अधिकारी आम जनता के साथ भेदभाव करते हैं, उनके कार्यो को लटकाए रखते है. सरकारी विभागों में कार्यरत अधिकतर अधिकारी और कर्मचारी, चाहे कोई से भी वर्ग(एससी, एसटी, ओबीसी और समान्य) से आते हो, उनके द्वारा जनता के साथ किया जाने वाला भेदभाव और भ्रष्टाचार बहुत ही घातक होता है. इसलिए भेदभाव के लिए अलग से कानून बनना चाहिए या वर्तमान कानून में संशोधन होना चाहिए. लेकिन देश में आरक्षण आर्थिक आधार पर ही होना चाहिए. जिससे सबका समान विकास हो सके.


जहां तक महिलाओ, विकलांग और दिव्यांग के आरक्षण का सवाल है, उनको जो आरक्षण मिल रहा है, वह जारी रहना चाहिए.