वह स्कूल जाती थी तो लोग पत्थर मारते थे…

महिलाओं के हक के लिए पहले खुद शिक्षित बनी सावित्री



नई दिल्ली। 
पूरे विश्व मे आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन भारत में दलित महिलाएं आज के दिन नहीं मनाती हैं। बल्कि, 10 मार्च  को भारतीय महिला दिवस के तौर पर मनाती हैं। इस दिन भारतीय महिला दिवस मनाने की परंपरा काफी समय से है।

10 मार्च को सावित्री बाई फुले का स्मृति दिवस


19वीं सदी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने वाली देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का स्मृति दिवस होता है। कोई इस बात को झुकला नहीं सकता कि पूरे भारत में सावित्री बाई फुले जैसी प्रखर चिंतक, स्त्री शिक्षा की रीढ़ और क्रांतिकारी सामाजिक विचारक चरित्र और कोई हुआ ही नहीं। इसलिए उनके स्मृति दिवस को भारतीय महिला दिवस के रूप में मनाते हैं।

गंदगी फेंकते थे लोग


सावित्री ने ऐसे दौर का सामना किया जब वह विद्यालय जाती थीं, तो लोग पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। फिर भी उन्होंने खुद पढ़कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले। दुनिया जितनी भी देखी, सुनी, समझी और पढ़ी, उसमें ऐसा महान चरित्र शायद ही देखने को मिले। जिसने, इतना अपमान सहकर भी शिक्षा ग्रहण की और दूसरी महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ी हो।

महिलाओं की सबसे अहम भूमिका


उन्होंने इस बात को साबित कर दिया कि किसी भी देश या समाज के मानवीय विकास में महिलाएं सबसे अहम भूमिका अदा करती हैं। जिस घर-समाज-देश में महिलाएं पढ़ी लिखी होती हैं, उन्हें फैसले लेने का हक होता है, वह निरंतर विकास की दिशा में बढ़ता है। आज हमारे देश में लड़कियों को जो शिक्षा मिल रही है, उसमें उनके योगदान को झुकलाया नहीं जा सकता।

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