केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर से 10 हजार अर्धसैनिक बलों (100 कंपनियां) को हटाने का महत्त्वपूर्ण फैसला लिया है। मंत्रालय ने राज्य में सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने के बाद यह फैसला लिया है।
केंद्र सरकार के इस फैसले को एक बड़े संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार का यह आकलन है कि राज्य में जनजीवन तेजी से सामान्य हो रहा है। इसलिए सरकार यह मानकर चल रही है कि राज्य में कानून-व्यवस्था और सुरक्षा की स्थिति पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत हुई है और धीरे-धीरे राजनीतिक प्रक्रिया भी बहाल करने की जरूरत है।
लोगों को याद होगा कि 5 अगस्त, 2019 को नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए समाप्त कर दिया था। इसके तहत राज्य को विशेष दर्जा हासिल था। इस ऐतिहासिक कदम से राज्य का पुनर्गठन किया गया है और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया है।
पिछले वर्ष अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद 10 हजार जवानों को जम्मू-कश्मीर भेजा गया था जिससे कि वहां कानून व्यवस्था बनाये रखने में इनका सहयोग लिया जा सके। सीआरपीएफ की कुल 40 कम्पनियों और सीआरएसएफ, बीएसएफ तथा एसएसबी की 20-20 कम्पनियों को इसी सप्ताह बुलाया जायगा।
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जवानों को ले जाने के लिए विमानों की व्यवस्था की गयी है। इससे पूर्व मई में दस और दिसम्बर 2019 में 72 कम्पनियों को वापस बुलाया गया था। जम्मू-कश्मीर में हालात तेजी से बदल रहे हैं। जन-जीवन सामान्य होने के साथ ही विकास की गतिविधियां भी तेज हो गयी हैं। व्यापारिक कामकाज भी पटरी पर आने लगा है।
एक समस्या आतंकी गतिविधियों को लेकर अवश्य है। हाल के दिनों में आतंकी हमले हुए हैं और आने वाले दिनों में भी इसकी आशंकाएं बनी हुई हैं। एक ताजा घटनाक्रम में हन्दवाड़ा में सुरक्षाबलों के अभियान में तीन आतंकी मारे गये हैं, जिनमें दो आतंकी लश्कर-ए-तैयबा के कमाण्डर हैं। अधिकारियों का मानना है कि राज्य में सक्रिय अधिकांश आतंकी कमाण्डर मारे जा चुके हैं।
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हिंसक प्रदर्शनों और पत्थरबाजी की घटनाएं भी काफी कम हो गयी हैं। इसके बावजूद आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान जारी है। दस हजार सुरक्षा बलों के जवानों की वापसी का निर्णय बदलते हालात के सन्दर्भ में ही किया गया है। जवानों की वापसी से राज्य की जनता का विश्वास बढ़ेगा और इसका सकारात्मक सन्देश भी जाएगा।
केन्द्र सरकार जम्मू-कश्मीर में शीघ्र ही चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के पक्ष में है। सरकार इस दिशा में कोशिशें भी कर रही है। जी.सी. मुमरू की जगह राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल का पद सौंपे जाने का आशय भी यही निकाला जा रहा है। वह राज्य में विश्वास बहाली की दिशा में अनेक कदम भी उठा रहे हैं।
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सिन्हा ने नागर समाज के लोगों के साथ संवाद कायम करना शुरू कर दिया है। राज्य के विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों के साथ मिलकर वह नई शिक्षा नीति को लागू करने के बारे में विचार-विमर्श कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर में अभी परिसीमन का कार्य चल रहा है और इसे शीघ्र ही पूरा कर लिया जायगा। उसके बाद ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाएगी । इससे चुनी हुई सरकार सत्ता में आएगी। राजय में एक अन्तराल के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था का अध्याय शुरू होगा।