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महामारी खत्म नहीं हुई- Amar Bharti Media Group सम्पादकीय

महामारी खत्म नहीं हुई

भारत में कोरोना की तेज रफ्तार चिंता का विषय बनती जा रही है। अगर पिछले सप्ताह की स्थिति से तुलना की जाए, तो न केवल मुत्यु दर बल्कि नये मामलों में भी तीव्र बढ़ोतरी हुई है। यह वृद्धि साधारण नहीं है, दोगुनी से भी ज्यादा है। दिल्ली में भी एक बार फिर से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ी है। महाराष्ट्र में भी हालात बहुत बेहतर नहीं कहे जा सकते हैं।

यही वजह है कि सरकार और जनता दोनों के मन में भय व्याप्त है। बुधवार को एक दिन में कोरोना के नये मामलों की संख्या 78,761 तक पहुंच गई । इस तरह कोरोना के कुल मामले 37 लाख से अधिक हो चुके हैं। अब भारत दुनिया में ऐसा देश बन चुका है, जहां एक दिन में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं।

अगर यही रफ्तार रही, तो कोई आश्चर्य नहीं कि आने दिनों में यह एक दिन में एक लाख का आंकड़ा छू दे। इसकी यात्रा पर नजर डाली जाए, तो कहा जा सकता है कि इसने लॉकडाउन खुलने के साथ उंची छलांग लगाई है। मई में यह एक दिन में पांच हजार के आंकड़े को ही पार कर पाया था, लेकिन जुलाई अंत होते-होते यह पचास हजार को पार कर गया।

अभी यह एक दिन में अस्सी हजार के आंकड़े को छूने वाला है। महाराष्ट्र की स्थिति सुधरती नहीं दिखाई पड़ रही है, जहां अब एक दिन में सोलह हजार से अधिक मामले आने लगे हैं। तमिलनाडु को पीछे छोड़कर आंध्र प्रदेश देश में दूसरा सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में शुमार हो गया है। उत्तर प्रदेश भी एक दिन में छह हजार के आंकड़े को पार कर गया।

यह सही है कि कोरोना के मामलों में इस बढ़ोतरी के पीछे जांच में तेजी है। अब एक दिन में दस लाख से ज्यादा कोरोना के नमूनों की जांच होने लगी है।हालांकि पॉजिटिविटी दर में कमी आ रही है, लेकिन वह संतोषजनक नहीं है। इस तरह कोरोना संक्रमण के खतरे को अभी हल्के में खारिज नहीं किया जा सकता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिर्देशक ट्रेडोस अधानोम घेब्रेसस ने कहा है कि वह बच्चों को विद्यालयों में लौटते हुए, लोगों को काम पर वापस जाते हुए देखना  चाहते हैं, लेकिन इसी के साथ किसी भी देश का बर्ताव ऐसा नहीं होना चाहिए जैसे कि महामारी खत्म हो गई हो।

अगर कोई देश स्थिति को सामान्य करने की दिशा में वाकई में गंभीर है तो उन्हें वायरस के संचरण पर रोक लगाना होगा और जिंदगियां बचानी होंगी। बिना किसी नियंत्रण के चीजों को खोलना तबाही को आमंत्रित करने जैसा है।

जिस तरह समाज में अब कोरोना के प्रति व्यवहार में ढिलाई सामने आ रही है, उससे ऐसा होना स्वाभाविक है। आर्थिक गतिविधि बढऩे का मतलब कोरोना को लेकर आत्मसंतुष्टि का भाव नहीं हो सकता।

समाज को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि अब यह एक दिन में नौ सौ से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। संतोष की बात यही है कि कोरोना से ठीक होने वालों की दर निरंतर सुधार की ओर है।

करीब 36 लाख मामलों में सक्रिय मामले करीब साढ़े 8 लाख ही हैं। कुल मृत्यु दर में भी कमी आ रही है। यानी कुल मिलाकर सभी को सचेत रहने की जरूरत है।