समझिए – सुशांत केस के कानूनी दांव-पेंच

#26/11 मुंबई हमले केस के मुख्य जांच अधिकारी रमेश महाले और पूर्व आईपीएस अधिकारी व नामी एडवोकेट वाई. पी. सिंह का भी कहना है कि जहां अपराध हुआ है, केस का इनवेस्टिगेशन उसी शहर की पुलिस कर सकती है, दूसरे शहर की नहीं।

#मुंबई. सुशांत सिंह केस में अपने और अपने परिवार के खिलाफ पटना में एफआईआर दर्ज होने के बाद रिया चक्रवर्ती ने अपने वकील सतीश मानशिंदे के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और पटना केस को मुंबई ट्रांसफर करने का अनुरोध किया है।

इस संबंध में महाराष्ट्र एटीएस में लंबे समय तक काम कर चुके पूर्व सीनियर इंस्पेक्टर दिनेश अग्रवाल ने खास बातचीत में 11 जुलाई, 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट का उदाहरण दिया, जिसमें काफी लोगों की मृत्यु हो गई थी।

अग्रवाल कहते हैं कि सुशांत केस के ज्यूरिडिक्शन एंगल को समझने के लिए 14 साल पुराना मुंबई बम धमाकों का वह केस समझना बहुत जरूरी है, जिसे 7/11 के नाम से भी जाना जाता है। अग्रवाल के अनुसार, मुंबई ट्रेन ट्रेन ब्लास्ट से शामिल होने की विश्वस्त सूचना मिलने पर एटीएस की एक टीम 20 जुलाई, 2006 को बिहार के मधुबनी गई।

मधुबनी की लोकल पुलिस की मदद से कमाल अंसारी के घर की तलाशी ली गई, तो वहां संदिग्ध काला पाउडर मिला। उसके बाद एटीएस टीम कमाल को डिटेन कर मुंबई लाई और बाद में उसे मुंबई में ब्लास्ट केस में अरेस्ट किया।

 

कमाल अंसारी को फांसी की सजा सुनाई

मुंबई में 11 जुलाई, 2006 को कई लोकल ट्रेनों में ब्लास्ट हुए थे, उनमें से एक ट्रेन का पूरा कोच ही उड़ गया था।

उस कोच के टूटे हुए पीस को और मधुबनी में जब्त संदिग्ध पाउडर को जब मुंबई में फॉरेंसिक लैब में जांच के लिए भेजा गया, तो उसकी रिपोर्ट से पता चला कि मुंबई की ट्रेनों में वही पाउडर का इस्तेमाल किया गया, जो मधुबनी में कमाल अंसारी के घर से मिला था।

फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट में बताया गया कि यह पाउडर आरडीएक्स था। अग्रवाल कहते हैं कि यहां दो केस हो गए। एक केस जो मुंबई में हुए ब्लास्ट से जुड़ा हुआ था और दूसरा केस जब्त आरडीएक्स का था, जो मुंबई से दूसरे शहर यानी मधुबनी से जुड़ा हुआ था। अग्रवाल के अनुसार, हमने मधुबनी में जब्त आरडीएक्स की जीरो नंबर एफआईआर मुंबई में दर्ज की और मधुबनी पुलिस को वह केस ट्रांसफर कर दिया।

मधुबनी पुलिस ने बाद में उस केस में अपना और इनवेस्टिगेशन किया, केस पेपर बनाए और ऐविडेंस इकट्ठा किए।

 

चूंकि महाराष्ट्र एटीएस को 11 जुलाई, 2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में कमाल अंसारी व अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करना था और उसमें मधुबनी में कमाल अंसारी के घर मिले आरडीएक्स से जुड़े ऐविडेंस व केस पेपर जरूरी चाहिए थे, इसलिए महाराष्ट्र एटीएस ने सुप्रीम कोर्ट में इन सबूतों व दस्तावेजों के लिए अर्जी दी।

सुप्रीम कोर्ट ने मधुबनी के एसपी से जवाब मांगा और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मधुबनी से जुड़े सारे केस पेपर, ऐविडेंस महाराष्ट्र एटीएस को दे दिए गए। उस केस में मुकदमा चला और सेशन कोर्ट ने कमाल अंसारी को फांसी की सजा सुनाई। अब यह केस बॉम्बे हाईकोर्ट में पेंडिंग है।

उस वक्त के एटीएस चीफ के.पी.रघुवंशी ने भी गुरुवार को बताया हमें उस दौरान मधुबनी पुलिस और सुप्रीम कोर्ट दोनों का सहयोग मिला।

दिनेश अग्रवाल कहते हैं बिहार पुलिस को सुशांत केस में भी यही प्रकिया अपनानी चाहिए थी। सुशांत के पिता की वह जीरो नंबर की एफआईआर लेती और मुंबई पुलिस को तत्काल वह केस ट्रांसफर कर देती। अग्रवाल कहते हैं कि मुंबई में बांद्रा पुलिस पर आरोप लग रहा है कि डेढ़ महीने हो गए, वह अभी तक एडीआर (एक्सिडेंटल डेथ रजिस्टर्ड) पर ही केस का इनवेस्टिगेशन कर रही है। अग्रवाल कहते हैं कि एडीआर में सीआरपीसी के सेक्शन 174 के तहत पुलिस को जांच करने का पूरा अधिकार है।

इस सेक्शन 174 में संबंधित पुलिस स्टेशन को प्रारंभिक जांच करके इस संबंध मे जो भी प्राधिकृत मजिस्ट्रेट है, उसे रिपोर्ट पेश करनी होती है।

मजिस्ट्रेट के आदेश के मुताबिक जांच जारी रहती है। इस दौरान अगर पुलिस अपनी जांच में दौरान कोई अपराध पाती है, तो केस रजिस्टर कर आगे उस हिसाब से इनवेस्टिगेशन करती है।

अग्रवाल कहते हैं कि दिल्ली पुलिस ऐक्ट के तहत सीबीआई को किसी भी केस को अपने पास ट्रांसफर करने का अधिकार है।

वह सुशांत केस को भी ले सकती है, लेकिन पटना पुलिस कानूनी तौर पर सुशांत केस का इनवेस्टिगेशन अपने पास नहीं ले सकती।