
लखनऊ, उत्तर प्रदेश की राजनीतिक राजधानी, जहाँ सुबह का सूरज जैसे ही विधानसभा भवन की ऊँची-ऊँची दीवारों पर सुनहरी किरणें बिखेरता है, वैसा लगता है मानो आज का दिन साधारण नहीं होने वाला। मॉनसून सत्र का पहला दिन—सरकार के लिए अपना विज़न दिखाने का मौका, और विपक्ष के लिए सरकार को घेरने का सुनहरा अवसर। लेकिन किसे पता था कि यह दिन एक ऐसे वाक्य से इतिहास में दर्ज होगा, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तल्ख़ी और व्यंग्य के साथ उछाल दिया—
“लोकतंत्र शब्द से कब से विपक्ष को विश्वास होने लगा?”
सुबह का सीन: जब सदन खुला और गरमी चढ़ी
सुबह 11 बजे से कुछ मिनट पहले विधानसभा के गलियारे में तेज़ कदमों की आहट, नेताओं के साथ आते सुरक्षा कर्मी, मीडिया कैमरों की चमक, और रिपोर्टरों के हाथ में तैयार नोटबुक। सभी की नज़र इस बात पर कि आज विपक्ष किस मुद्दे पर हमला करेगा और सरकार कैसे बचाव करेगी।
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय पहले ही तय कर चुके थे कि गोरखपुर की घटना को सबसे पहले उठाना है। जैसे ही कार्यवाही शुरू हुई, उन्होंने माइक्रोफोन संभाला और बोल पड़े

“मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र गोरखपुर में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है। मेरे रास्ते पर बुलडोज़र खड़े किए गए, ऊपर चढ़कर नारेबाज़ी हुई, मुझे गाड़ी से खींचने की कोशिश की गई। क्या यही लोकतंत्र है?”
सदन में हलचल मच गई। विपक्ष की बेंचों से “शर्म करो, शर्म करो” की गूंज उठी, जबकि सत्तापक्ष की ओर से हल्की हँसी और कानाफूसी शुरू हो गई।
योगी का पलटवार: तल्ख़ी में लिपटा व्यंग्य
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब जवाब के लिए माइक संभाला, तो माहौल जैसे स्थिर हो गया। उन्होंने बिना भूमिका बांधे सीधे वार किया—
“लोकतंत्र शब्द से कब से विपक्ष को विश्वास होने लगा? यह शब्द इनको शोभा नहीं देता।”

उनके इस बयान ने सत्तापक्ष की बेंचों को उत्साह से भर दिया—ठहाके, मेज़ थपथपाना, और सीटियों की आवाज़। लेकिन विपक्ष भला चुप रहने वाला था? उन्होंने और ज़ोर से नारे लगाने शुरू कर दिए।
योगी ने आगे कहा, “माता प्रसाद पांडेय जी वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन विपक्ष उनके कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति कर रहा है। गोरखपुर में जो विरासत गलियारा बन रहा है, वह पिछली सरकारों ने क्यों नहीं बनवाया? अगर हम विकास कर रहे हैं, तो आपको तकलीफ़ क्यों?”
सदन के बाहर का रणभूमि जैसा माहौल
विधानसभा भवन के बाहर का नज़ारा किसी राजनीतिक मेले जैसा था। समाजवादी पार्टी के विधायक, सिर पर लाल टोपी, हाथ में तख्तियां—जिन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था:
“हमें चाहिए पाठशाला, हमें नहीं चाहिए मधुशाला”
“आप चलाइए मधुशाला, हम चलाएंगे पीडीए पाठशाला”

कुछ विधायकों ने बाकायदा कांवड़ जैसी प्रतिकात्मक वस्तु उठाई थी, जिस पर एक ओर शिक्षा की मांग और दूसरी ओर शराब नीति का विरोध लिखा था। यह दृश्य कैमरों में कैद होते ही सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा।
अध्यक्ष की बार-बार अपील और विपक्ष की जिद
अंदर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना बार-बार कहते रहे, “कृपया अपनी सीट पर बैठें, मुद्दों पर बहस करें, नारेबाजी से कुछ हासिल नहीं होगा।” लेकिन विपक्ष की बेंचें मानो किसी और ही मोड में थीं। उनके लिए यह मौका सिर्फ़ चर्चा का नहीं, बल्कि सरकार पर दबाव बनाने और जनता के सामने अपनी आवाज़ पहुंचाने का था।
विजन डॉक्यूमेंट 2047: महत्वाकांक्षा बनाम अविश्वास
इस पूरे शोरगुल के बीच सरकार का मुख्य एजेंडा ‘विकसित भारत, विकसित यूपी विजन डॉक्यूमेंट 2047’ था। मुख्यमंत्री ने इसे आने वाले 25 वर्षों के विकास की ब्लूप्रिंट बताया और घोषणा की कि 13 अगस्त को सुबह 11 बजे से लगातार 24 घंटे इस पर चर्चा होगी।
लेकिन विपक्ष का कहना था कि जब तक मौजूदा मुद्दों—बेरोज़गारी, महंगाई, शिक्षा और कानून व्यवस्था—पर जवाब नहीं दिया जाएगा, तब तक कोई भी भविष्य की योजना कागज़ पर ही रहेगी।
अध्यादेशों की बौछार और बहस की मांग
सत्र में बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट गठन, पुराने कानूनों का निरसन, निजी विश्वविद्यालय और भर्ती प्रक्रिया में संशोधन, तथा जीएसटी कानून में बदलाव से जुड़े छह अध्यादेश पेश किए जाने हैं। सत्ता पक्ष चाहता है कि इन्हें जल्द पारित किया जाए, लेकिन विपक्ष की मांग है कि हर एक पर अलग-अलग और लंबी बहस हो।
सोशल मीडिया का रणक्षेत्र
सत्र के बीच-बीच में नेताओं के बयान बाहर आकर सोशल मीडिया पर धमाका कर रहे थे। ट्विटर पर #UPAssembly, #Loktantra, #YogiAdityanath और #SPVsBJP जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे। समर्थक और विरोधी, दोनों अपने-अपने नजरिए से वीडियो क्लिप्स और ग्राफिक्स शेयर कर रहे थे।
दिन का अंत लेकिन सत्र की शुरुआत
शाम होते-होते भी विधानसभा के गलियारे का तापमान कम नहीं हुआ। बाहर प्रदर्शन कर रहे कार्यकर्ताओं की संख्या और बढ़ गई थी। मीडिया चैनलों पर “योगी बनाम विपक्ष” की डिबेट्स शुरू हो चुकी थीं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सत्र 2027 के चुनावों तक असर डाल सकता है, क्योंकि इसमें विकास, लोकतंत्र और जन मुद्दों की त्रिकोणीय बहस ने एक नया नैरेटिव गढ़ दिया है।