देवनाथ
नई दिल्ली। गुण्डागर्दी के खिलाफ यूपी पुलिस ने जो नाम कमाया था उसे गोरखपुर में गंवा दिया। इसके साथ ही यह चर्चा आम हो गई कि मुख्यमंत्री चाहे अखिलेश हों या योगी आदित्यनाथ, पुलिस वही करती है जो उसे ठीक लगता है। सारी समस्या यहीं से शुरू होती है क्योंकि पुलिस को रिश्वत खाना बहुत ठीक लगता है। एक सभ्य आदमी थाने के भीतर जाने से पहले कई बार सोचता है कि न जाने किस तरह की मुसीबत मोल लेकर वापस लौटे। वर्दी के रौब और डण्डे के जोर में अब भी कोई तब्दीली नहीं आई है। थाने भी चल रहे हैं और रिश्वत का जोर भी। अगर किसी की नहीं चल रही तो वो है आम आदमी। दिल्ली हो या मुम्बई, यूपी हो या राजस्थान हर राज्य में पुलिस का चरित्र एक जैसा दिखाई देता है। हर राज्य का नागरिक पुलिस के रिश्वतखोर चरित्र से डरता है और यह मानकर जीता है कि इसका कोई इलाज नहीं।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री काल में यह धारणा बलवती हो रही थी कि पुलिस काफी हद तक सुधर गई है। यह भी कहा जा रहा था कि बदमाशों में भय का माहौल है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि योगी के सख्त रूख के चलते अपराधियों में खौफ का माहौल रहा और रिकॉर्ड बदमाशों के एनकाउण्टर हुए। पुलिस की पीठ थपथपाई जाने लगी मगर इसकी आड़ में जबरन वसूली का एक ऐसा खेल-खेला जाने लगा जो बेहद खतरनाक है। एनकांउटर का डर दिखाकर न सिर्फ व्यापारियों, होटल मालिकों से वसूली अभियान चलाया गया अपितु यह भी संकेत दिए गए कि पुलिस को असीमित अधिकार (शासन की तरफ से) दिए गये हैं जिसके चलते पुलिस के सामने किसी की नहीं चलेगी। गोरखपुर की घटना इसकी बानगी है।
एक व्यापारी मीटिंग के सिलसिले में गोरखपुर जाता है। जहां उसकी हत्या सिर्फ इसीलिए कर दी जाती है कि वह जांच के तरीके को लेकर कुछ कह देता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि दोषी पुलिस कर्मियों का मनोबल क्या इस कदर बढ़ा हुआ था कि वो मान चुके थे कि कुछ भी होने या कर देने की स्थिति में भी उनका बाल-बांका नहीं होगा। क्या सच में उन्हें आला अधिकारियों का संरक्षण नहीं मिला था? क्या पुलिसकर्मी महकमे के कमाऊ पूत थे जिसके चलते वे अधिकारियों के दुलारे हो गए थे। ऐसे न जाने कितने कमाऊ पूूत प्रदेश के थानों में खुलेआम घूम रहे हैं और सरेआम लोगों को लूट रहे हैं।
इन सबके बीच एक अच्छी खबर यह है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे पुलिसकर्मियों की सूची बनाने को कहा है जिन पर कई तरह के आरोप हैं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि भ्रष्टाचार में लिप्त पुलिसकर्मी यूपी में नहीं चाहिए। यही वजह है कि अब थाने और सर्किल में तैनात आरोपों में घिरे एक-एक पुलिसकर्मियों और अधिकारियों की छानबीन का फैसला किया गया है।
इन सबके बीच यह सवाल मौजूं है कि हत्यारे पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआइआर न कराने की सलाह देने वाले गोरखपुर के डीएम और एसएसपी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं? क्या एफआईआर से बचने की सलाह देना भ्रष्टाचार एवं दोषी पुलिसकर्मियों के पक्ष में खड़ा हो जाना विधि सम्मत है? अगर नहीं तो तत्काल इन दो बड़े अधिकरियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
यह आम धारणा है कि बेहद ईमानदार और सख्त मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ऐसा कर सकते है। जनता को लगता है कि वीडियो वायरल होने के बाद ये भी जरूर नपेंगे।