सिख धर्म के 5 तख्तों का इतिहास और क्या है मान्यता, पढ़ें…

लखनऊ। सिख ईश्वर के वे शिष्य हैं जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं। सिख एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। उनका मानना ​​है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में ईश्वर को याद करना चाहिये। सिख धर्म के 10 गुरु हुए हैं. प्रथम गुरु गुरुनानक देवजी और अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी थे। सिख धर्म ने देश और धर्म की रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देकर इस देश की आक्रांताओं से रक्षा की है। इसी क्रम में उन्होंने पांच तख्तों को स्थापित किया था। अगर आप नहीं जानते हैं तो आइये मैं आपको सिख धर्म के उन पांच तख्तों के बारे में बताती हूँ…..

सिख धर्म के 5 तख़्त

अकाल तख्त साहिब, अमृतसर

अकाल तख्त साहिब का मतलब है अनन्त सिंहासन। इस तख्त गुरुद्वारे की स्थापना अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई थी। यह अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर का एक हिस्सा है। इसकी नींव सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोविंद साहिब द्वारा 1609 में रखी गई थी। अकाल तख्त पांच तख्तों में सबसे पहला और पुराना है।

Virginias five Sikh Sri Akal Takhat Sahib summoned

तख्त श्री हरिमंदिर साहिब, पटना

यह तख्‍त बिहार राज्य की राजधानी पटना शहर में स्थित है इसीलिए इसे पटना साहिब भी कहते हैं। गुरु गोविंद सिंह का यहां जन्म हुआ था। आनंदपुर साहिब में जाने से पहले गुरु गोविंद सिंह ने अपना बचपन यहां बिताया था। हरिमंदिर का अर्थ है हरि का मंदिर, या प्रभु का घर। सिखों के दूसरे तख्त के तौर पर स्थापित है।

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तख्त श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर

पंजाब के रोपड़ जिले में शिवालिक क्षेत्र में आनंदपुर नगर में तख्त श्री केसगढ़ साहिब स्थित है। सन् 1936-1944 में तख्त केसगढ़ साहिब बनाया गया। सन् 1664 में श्री गुरु तेग बहादुर ने माक्होवाल के प्राचीन क्षेत्र में आनंदपुर साहिब गुरुद्वारा बनवाया था। गुरु गोबिंद सिंहजी ने यहां 25 साल व्यतीत किया है। यहीं 13 अप्रैल सन् 1699 में गुरु गोविंद सिंह द्वारा पांच प्यारों को खण्डे बांटे की पाहुल छका कर खालसा के आदेश स्थापित किए थे। यह सिखों का तीसरा तख्‍त है।

Spiritual Places in India - भारत के धार्मिक स्थल: गुरुद्वारा तख्त श्री  केशगढ़ साहिब - आनंदपुर साहिब ( Gurudwara Takht Shri Keshgarh Sahib -  Anandpur Sahib )

तख्त श्री हजूर साहिब, नांदेड़

महाराष्ट्र के दक्षिण भाग में तेलंगाना की सीमा से लगे प्राचीन नगर नांदेड़ में तख्‍त श्री हजूर साहिब गोदावरी नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस तख्‍त सचखंड साहिब भी कहते हैं। इसी स्थान पर गुरू गोविंद सिंह जी ने आदि ग्रंथ साहिब को गुरुगद्दी बख्शी और सन् 1708 में आप यहां पर ज्योति ज्योत में समाए। सन 1832 से 1837 तक पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के आदेश पर यहां गुरुद्वारे का निर्माण कार्य चला। यह सिक्खों का चौथा तख्त है। यहीं गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा था:-
आगिआ भई अकाल की तवी चलाओ पंथ..
सब सिखन को हुकम है गुरु मानियो ग्रंथ..
गुरु ग्रंथ जी मानियो प्रगट गुरां की देह..
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शब्द में लेह..

हजूर साहिब - विकिपीडिया

तख्त श्री दमदमा साहिब

भटिंडा के पास गांव तलवंडी साबो में दमदमा साहिब तख्‍त स्थित है। गुरु गोविंद सिंह यहां एक साल के लिए रुके थे और 1705 में गुरु ग्रंथ साहिब के अंतिम संस्करण दमदमा साहिब बीर को अंतिम रूप यहां दिया था। सन् 1704 में आनंदपुर साहिब पर मुगलों के आक्रमण के बाद जब गुरु गोबिंद सिंह जी माता गुजरी, चार साहिबजादों व अन्य सिक्खों के साथ वहां से निकले तो यहीं उनके परिवार के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके चलते इस तख्‍त का नाम दमदमा साहिब पड़ा।

Takht Sri Damdama Sahib Bani Guru Ki – Bani Guru Ki

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