येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद कौन होगा कर्नाटक का चेहरा

सत्ता में दो साल पूरे होने के मौके के दिन येदियुरप्पा का इस्तीफा

नई दिल्ली। बीते सोमवार को भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ले लिया। ऐसा दृश्य एक ही महीने में दो राज्यों (पहले उत्तराखंड और अब कर्नाटक) के साथ हो चुका है और दोनों ही भाजपा शाषित राज्य के मुख्यमंत्री थे। जहां एक ओर 2 जुलाई को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जनप्रतिनिधि क़ानून की धारा 151A का हवाला देते हुए अपना इस्तीफा सौंपा था। तो अब दूसरी ओर 26 जुलाई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके येदियुरप्पा के भी इस निर्णय के पीछे की वजह का लोग कयास लगा रहे हैं।

इकरारनामे के चलते दिया इस्तीफा ?

येदियुरप्पा के इस्तीफे के पीछे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि येदियुरप्पा के इस्तीफे के पीछे केंद्र सरकार को दिया गया उनका वह ‘इकरारनामा’ हो सकता है। जिसमें भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उनसे ये वादा लिया था कि सत्ता में दो साल पूरे होने के बाद वे पद छोड़ देंगे।
कर्नाटक के सियासी गलियारों में यह कहा जा रहा है कि येदियुरप्पा ने उसी ‘इकरारनामे’ पर अमल करते हुए उन्होंने सत्ता में दो साल पूरे होने पर सोमवार को पद छोड़ने का एलान किया। हालांकि उन्होंने यह वादा किया कि साल 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को सत्ता में लाने के लिए वे काम करते रहेंगे।

येदियुरप्पा के बाद भाजपा के सामने विकल्प

लेकिन अभी भी मुश्किलों को पार करने का पुल पूरी तरह से बना नहीं है। क्योंकि भाजपा येदियुरप्पा की सोच के खिलाफ किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बिठाएंगे जिससे की येदियुरप्पा के अनुयायी नाराज़ हो जाए। लेकिन भाजपा के सामने विकल्पों के रूप में संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी का नाम सीएम पद की रेस में सबसे आगे चल रहा है। इसके अलावा कर्नाटक के ही गृह मंत्री बासवराज बोम्मई भी सीएम पद की रेस में हैं। हालांकि इन दो नामों के अलावा सी टी रवि, मुरुगेश निरानी, अरविंद बेलाड और भाजपा के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव बी एल संतोष भी इस रेस में शामिल हैं।

लिंगायत समुदाय में नाराज़गी

बीएस येदियुरप्पा जिस लिंगात समुदाय से आते है। उस समुदाय के साधुओं का समूह चाहता था कि येदियुरप्पा को न हटाया जाए। लेकिन अब शायद वो इस फैसले से नाखुश होंगे। जानकारी के तौर पर यह लिंगायत समुदाय कर्नाटक के अंदर 17 फीसदी हिस्से की भागेदारी रखते है और राज्य में करीब 100 सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।