पाकिस्तान से इसलिए नाराज हैं बलूचिस्तान के लोग?

कनाडा में बलोच एक्टिविस्ट करीमा बलोच की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत के बाद बलूचिस्तान में पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. बलूचिस्तान की 37 वर्षीय करीमा मेहराब (बलोच) की लाश सोमवार को कनाडा के टोरंटो में मिली थी. करीमा बलूचिस्तान में पाकिस्तान की सरकार और सेना के अत्याचार को लेकर बेहद मुखर थीं. वह पाकिस्तान छोड़कर कनाडा में बस गई थीं.

कनाडा पुलिस ने एक्टिविस्ट करीमा की मौत को गैर-आपराधिक करार दिया है. कनाडा की पुलिस ने कहा है कि अभी तक हुई जांच से ऐसा नहीं लग रहा है कि करीमा की हत्या हुई है. हालांकि, बलूचिस्तान के तमाम नेता इसे हत्या करार दे रहे हैं.

पीओके एक्टिविस्ट सरदार शौकत अली कश्मीरी ने कहा कि पाकिस्तान का एक देश के तौर पर नाकाम होना तय है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की सेना और सरकार बंदूक की ताकत के दम पर बलूचिस्तान की आवाज को शांत नहीं नहीं करा सकते. ये पाकिस्तान को उसके अंत की तरफ ले जाएगा.

बलूचिस्तान में पाकिस्तान की सेना पर तमाम एक्टिविस्ट के अपहरण, हत्या और मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगते रहे हैं. बलोच नेता पाकिस्तान की इमरान खान की सरकार के खिलाफ बने विपक्षी दलों के गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट को भी समर्थन दे रहे हैं.

उनका कहना है कि इंटेलिजेंस एजेंसियों को निरंकुश शक्तियां हासिल हैं जिन्हें सीमित किया जाना बेहद जरूरी है. पाकिस्तान की सेना अपनी ताकत का इस्तेमाल बलोचों को निशाना बनाने में भी करती है.  एक्टिविस्ट शौकत का कहना है कि कलीमा, उसके भाई, चाचा और मामा को भी बलूचिस्तान में सरकार के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने का ही खामियाजा उठाना पड़ा था और उनकी भी हत्या कर दी गई थी. स्वीडन में निर्वासित जीवन जी रहे बलोच पत्रकार साजिद हुसैन की भी हत्या कर दी गई थी.

एक्टिविस्ट शौकत कहते हैं कि जैसे नाजी जर्मनी अपने प्रोपेगैंडा में नाकाम रहा और उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी, वैसे ही पाकिस्तान की सेना को भी अपने पापों की सजा भुगतनी पड़ेगी. शौकत की तरह तमाम बलोचों के मन में पाकिस्तान की सरकार को लेकर नाराजगी है.

प्राकृतिक संपदा के मामले में समृद्ध

बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला प्रांत है. प्राकृतिक गैस भंडार और खनिजों के मामले में भी यह बेहद समृद्ध है. हालांकि, इसका फायदा बलूचिस्तान को न मिलकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को मिलता है.

बलूचिस्तान में आए दिन हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं. बलोच आंदोलनकारियों का कहना है कि सेना द्वारा स्थानीय लोगों के अपहरण, प्रताड़ना और हत्याओं की वजह से लोगों के मन में पाकिस्तान विरोधी भावनाएं और प्रबल हो गई हैं.

चीन की सीपीईसी परियोजना से भी बढ़ रहा विद्रोह

बलूचिस्तान 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का भी सबसे अहम हिस्सा है. इस इलाके में ग्वादर बंदरगाह के साथ-साथ कई सड़कों का जाल भी बिछाया जा रहा है. बलूचिस्तान में बढ़ते संघर्ष में चीन की सीपीईसी परियोजना की भी भूमिका है. बलूचिस्तान की आजादी की मांग कर रहे संगठन लंबे समय से स्थानीय संसाधनों पर अपने हक की मांग करते रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि बलूचिस्तान में चीनी निवेश की वजह से अलगाववादियों के भीतर राष्ट्रवाद की भावना और भी गहरी हो गई है. दूसरी तरफ, पाकिस्तान का चीनी निवेश की रक्षा करने का संकल्प और इलाके में सेना की मौजूदगी बढ़ाने की वजह से बलूचों का प्रतिरोध मजबूत होता जा रहा है.

पिछले वर्षों में सीपीईसी को निशाना बनाते हुए बलूच अलगाववादियों ने कई हमलों को अंजाम दिया है. सीपीईसी की घोषणा के वक्त बलूचों से सहमति नहीं ली गई थी जिससे वे नाराज हैं. इसके अलावा बलूच उस आने वाले खतरे को महसूस कर रहे हैं जो सीपीईसी के बाद से बाहरी लोगों के पहुंचने से होने वाला है. ग्वादर में अधिकतर लोगों ने बलूचिस्तान से बाहर से आए कई निवेशकों को अपनी जमीनें बेच दी हैं. बलोचों को डर है कि धीरे-धीरे इलाके की जनसंख्या के स्वरूप में पूरी तरह से बदलाव हो जाएगा और बाहरी उन पर हावी हो जाएंगे.

अंग्रेजी शासन में बलूचिस्तान में 4 राज्य थे. बंटवारे के बाद तीन राज्यों ने पाकिस्तान में विलय स्वीकार कर लिया लेकिन कलात राज्य ने पाकिस्तान में विलय से इंकार कर दिया. कलात ने 11 अगस्त 1947 को खुद को आजाद प्रांत घोषित किया. कलात की बगावत पर जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना वहां भेजी. पाकिस्तानी सेना ने वहां हमला कर दिया. पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को स्वायत्त बलूच के कलात राज्य पर कब्जा कर लिया. तभी से यहां विद्रोह की आग जल रही है. यह राज्य पाकिस्तान और ईरान के बीच बंटा हुआ है. पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी क्वेटा है.

बलूचिस्तान में स्वायत्तता की मांग कर रहे समूहों में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलूच लिबरेशन फ्रंट (BLF) हैं. पाकिस्तानी सरकार अक्सर बलोचों के संघर्ष के लिए भारत समर्थक बीआरए नेता ब्रह्मदाग बुग्ती को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन बुग्ती जैसे नेता बलोच संघर्ष की बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा भर हैं.

1948 के बाद से बलोचों ने पाकिस्तान से आजादी का आंदोलन छेड़ रखा है. 1948, 1958 और 1974 में वे पाकिस्तान से लड़ाई लड़ चुके हैं. हालांकि, 1996 में बलूच नेता हैबैयर मरी ने बलूच आजादी की कोशिशों की कमजोरियों को आंकते हुए बलूच लिबरेशन मूवमेंट की आधारशिला रखी जिसे 2000 में आकार मिला. यह आंदोलन बलूचिस्तान से पाकिस्तानी सेना के लौटने और आजादी की मांग कर रहा है. इस संगठन को मिल रहा समर्थन पाकिस्तान सरकार के लिए चिंता का सबब है.

बलूचिस्तान में 2003 से लेकर अब तक हुए आत्मघाती हमलों में 800 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी है और 1600 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. बलूचिस्तान के भीतर पंथ को लेकर भी संघर्ष बढ़ गए हैं. 2009 के बाद से पंथों के संघर्ष में 760 से ज्यादा लोग मारे गए.

पाकिस्तान की सरकार और सैन्य अधिकारी अक्सर बलूचिस्तान में हिंसा के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बलूचिस्तान पर टिप्पणी के बाद से पूरे पाकिस्तान में हंगामा मच गया था. हालांकि, भारत का कार्ड खेलकर पाकिस्तान बलोचों की समस्या से बच नहीं सकता है.