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आज दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। महिला दिवस सेलिब्रेट करने का एकमात्र उद्देश्य महिलाओ को सशक्त बनाना है। आज लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए तरह तरह के आयोजन किए जाएंगे। लेकिन क्या एक दिन में समाज के दृष्टिकोण को बदला जा सकता है? हम सभी एक ऐसे समाज के बीच रहते है, जहां आए दिन एक-न-एक ऐसी घटनाएं होती है, जो लोगो को झकझोर के रख देती है। महिलाएं हर दिन छेड़छाड़, भेदभाव, दहेज उत्पीड़न का सामना करती है। आखिर क्यों महिला दिवस मनाने की जरूरत पड़ी?
समाज का वह तबका, जिसका लिबास तो बदल गया, लेकिन सोच वही रूढ़िवादी है। क्योंकि, आज भी लड़की शादी कर घर से दहेज के साथ खैरात में जाती है। उसके अपने कोई मायने नही होते। यही वजह है कि वह दहेज की प्रताड़ना से परेशान होकर मौत को गले लगा लेती है।
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अभी हाल में ऐसी घटनाएं हुई, जिन्होंने सभी को झंकझोर दिया। राशिका जो 7 करोड़ के दहेज के साथ अपना सब कुछ छोड़ सिर्फ खुशियों का सपना देख रही थी। लेकिन, यह जरूरी नही कि, हर सपना साकार हो। ऐसा ही हुआ राशिका के साथ उसने अपने परिवार के साथ रहने की बहुत कोशिश की। लेकिन, आखिर में मौत को गले लगा लिया। आयशा भी उनमें से एक थी, जिसने दहेज उत्पीड़न न झेल पाने के चलते आत्महत्या कर ली।
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न जाने कितनी और राशिका और आएशा होंगी, जिन्होंने ऐसी प्रथाओं के कारण अपनी जान गवाई होगी। एक औरत शर्ट के टूटे बटन से लेकर आदमी के टूटे विश्वास को जोड़ने का हौसला रखती है। लेकिन, उस औरत को दहेज में मिली खैरात समझ कर उसके साथ दुर्व्यवहार कर उसका हौसला तोड़ दिया जाता है। एक औरत दो चुटकी सिंदूर नही, 3 गुना रिस्पेक्ट चाहती है।
मजबूरी है कि आज के दौर में उसे अपनी इज्जत मुहं से मांगनी पड़ी रही है क्योंकि यह समाज एक लड़की को खरीदा हुआ उत्पाद समझता है, जैसा चाहे वैसे प्रयोग करो और छोड़ दो।
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हम सिर्फ कपड़ों और तकनीकों में मॉडर्न हुए है। लेकिन एक लड़की के लिए नजरिया वहीं पुराना। इस सच्चाई से भी सब वाकिफ हैं कि, इस दुनिया में आने का सहारा भी एक लड़की है। लेकिन, फिर भी एक लड़की के खरीददार उसके इर्द गिर्द घूमते रहते है। माना कि तुम खरीददार हो लेकिन मैनबबिकाऊ नही। आज राशिका हार गई, लेकिन अब नही, मैं लडूंगी भी और जवाब भी दूंगी। मुझे अपने सपनों को पंख लगाना आता है।