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World Labour Day 2020 : लॉकडाउन में हिम्मत नहीं हारी, पसीना बहाकर ऐसे कर रहे कमाई- Amar Bharti Media Group राष्ट्रीय

World Labour Day 2020 : लॉकडाउन में हिम्मत नहीं हारी, पसीना बहाकर ऐसे कर रहे कमाई

अमर भारती : लॉकडाउन लगते ही कई लोगों के रोजगार ठप हो गए। जिससे वे बेरोजगार हो गए। घर का खर्च चलना भी मुश्किल हो रहा है। इस बात को पहले से ही ध्यान में रखते हुए दूसरे दिन से ही राजू सिंह ठाकु र ने समझ लिया था कि लॉकडाउन जल्द खुलने वाला नहीं है। कोई अन्य ऐसा कार्य करना चाहिए। जिससे कि रोजगार चलता रहे। परिवार के लिए कु छ कमाई हो सके । इसी प्रकार अभिषेक विश्वकर्मा ने भी अपना धंधा बंद होने पर दूसरे कार्य करना शुरु कि ए अब दोनों ही व्यक्ति घर का खर्च निकाल पा रहे हैं। राजू सिंह बेच रहे सब्जी राजू सिंह ने देखा कि इस समय सब्जी वालों को छूट मिली हुई है। उन्होने सब्जी खरीदकर बेचना शुरु कर दिया। एक दो दिन कम मात्रा में सब्जी बिकी लेकि न फिर उन्होने रुक रुक कर सब्जी बेचना शुरु कि या तो लोग सब्जी लेने लगे। अब अच्छी कमाई भी होने लगी है। उन्होने कहा कि यदि वह धंधा ना भी चले तो लॉकडाउन ने दूसरा धंधा सिखा दिया है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी कहा है कि आत्म निर्भर होना पड़ेगा। मैंने भी सोचा कि अनेक लोग सब्जी बेचकर भी तो परिवार पाल रहे हैं मुझे भी करके देखना चाहिए। इससे ज्यादा तो नहीं लेकि न सुबह से दोपहर तक मेहनत मजदूरी का हिस्सा तो मिल ही जाता है। राजू ने कहा कि हम तो मेहनतकश हैं।
लाकडाउन से पहले वह भवन निर्माण के कार्य में मिस्त्रीगिरी का कार्य करते थे। जिसमें उन्हें 500 रुपये रोजनदारी मिल जाती थी। जिससे उनका पूरा परिवार का खर्च चल जाता था। लेकि न लाक डाउन के लगते ही उनका कार्य बंद हो गया। सभी मिस्त्री घर में बैठ गए। उसने सोचा यदि ऐसे ही घर में बैठे रहे तो घर का खर्च कैसे चलेगा। मकान का किराया तथा बच्चों की फीस आदि कहां से पूर्ति होगी। यही सोचते हुए उसे दो दिन हो गए फिर उन्होंने तय किया कि सब्जी बेचने में क्या हर्ज है। स्कूटी भी है। इसी पर रखकर मोहल्ले मोहल्ले सब्जी बेचना चाहिए। सब्जी बेचना शुरु किया तो उसी दिन से चालू है। उन्होंने बताया कि इस कार्य में उनको उनकी पत्नी भी साथ दे रही हैं। अभी कुछ दिन से हरी सब्जी पर रोक लग गई। इस कारण सूखी सब्जी आलू और प्याज बेच रहे हैं।

अभिषेक बने डिलिवरी ब्यॉय
अभिषेक विश्वकर्मा ने बताया कि पहले वह अपना स्वयं का कारोबार वेल्डिंग कार्य करते थे। जहां भी वेल्डिंग कार्य मिलता था, वहां जाकर करना उनका रोज का कार्य था। जिससे उन्हें कम से कम 500 रुपये रोज की बचत हो जाती थी। लेकिन लाकडाउन के बाद से पूरी तरह कार्य बंद हो गया। कुछ दिन तक घर में रहने के बाद उन्होंने सोचा कि घर में बैठे रहने से तो कुछ काम करना ठीक रहेगा। उन्होंने देखा कि कुछ युवक घर घर जाकर सामान देने का कार्य करते हैं। उन्होंने माल वाले से संपर्क करते हुए घर घर जाकर सामान देने के लिए अपनी सहमति दी। माल वाले ने उन्हें रोजनदारी पर रख लिया। तब से उनको प्रतिदिन मानदेय मिलने लगा। इससे उनके परिवार का खर्च निकलने लगा।