भगत सिंह के आदर्श : 19 साल की उम्र में इस क्रांतिकारी ने देश पर क़ुर्बान कर दी जान

शहीद-ए-आज़म वीर क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा को मानते थे अपना आदर्श

नई दिल्ली। भारत को स्वराज दिलवाने और अंग्रेजी शासन को समाप्त करने जैसे राष्ट्रहितों को पूरा करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले निर्भयी स्वतंत्रता सेनानी करतार सिंह सराभा का आज जन्मदिन है। गदर पार्टी आंदोलन के लोक नायक के रूप में उभरे करतार सिंह ने महज दो-तीन साल में ही अपने प्रखर व्यक्तित्व की ऐसी प्रकाशमान किरणें छोड़ीं, जिसने देश के युवाओं की आत्मा को देशभक्ति के रंग में रंग कर जगमग कर दिया। करतार सिंह को पंजाबी भाषा का पहला पत्रकार भी माना जाता है। महज 19 वर्ष की उम्र में करतार सिंह को फांसी दी गई थी।

अमेरिका से शुरू की अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति

24 मई, 1896 को पंजाब के लुधियाना जिले में सराभा गांव में जन्मे करतार सिंह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके सिर से उनके पिता सरदार मंगल सिंह का साया जल्दी उठ गया था। इसके बाद वे अपने दादा सरदार बदन सिंह की छाया में रहने लगे। अपनी शुरुआती शिक्षा लुधियाना से करने के बाद वह उड़ीसा अपने चाचा के पास चले गए और वहां से हाईस्कूल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल पास करने के बाद 15 साल की उम्र में वर्ष 1912 में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका पहुंचे और वहां पढाई के साथ-साथ नौकरी भी करने लगे। करतार सिंह बर्कले विश्वविद्यालय में रसायन शास्त्र के विद्यार्थी थे। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसके चलते उनके मन में अंग्रेजों के प्रति क्रांति की ज्वाला जागृत हुई।

यहाँ उनकी मुलाकात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारी लाला हरदयाल सिंह से हुई, जो अमेरिका में रहकर ही भारत को आजादी दिलाने की कोशिशों में लगे हुए थे। यहीं से करतार सिंह के जीवन का दूसरा अध्याय शुरू हुआ।

गदर समाचार पत्र में निभाई अहम भूमिका

भारत की आजादी के लिए 25 मार्च, 1913 को अमेरिका के ऑरेगन राज्य में हिन्दुस्तानियों की बैठक हुई। यहां लाला हरदयाल सिंह ने लोगों से कहा कि मुझे भारत को आजादी दिलाने के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले युवाओं की जरूरत है। इतना सुनते ही करतार सिंह उठ खड़े हुए। कम उम्र के करतार सिंह का यह जज्बा देख लाला हरदयाल सिंह ने उन्हें गले लगा लिया।

इसके बाद 21 अप्रैल, 1913 को जब अमेरिका में गदर पार्टी का गठन किया गया, तो इसी नाम से एक साप्ताहिक अखबार निकालने की घोषणा की गई, जिसकी कमान करतार सिंह को सौंपी गई।

“गदर” समाचार पत्र हिंदी और पंजाबी के अलावा बंगाली, गुजराती, पश्तो और उर्दू भाषा में भी प्रकाशित किया जाता था। इस अखबार का सारा काम करतार सिंह ही देखते थे। यह अखबार विदेशों में रह रहे भारतीयों तक पहुंचाया जाता था, जिसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी शासन की क्रूरता और हकीकत से लोगों को अवगत कराना था। करतार सिंह और उनके सहयोगियों के प्रयासों के चलते थोड़े ही समय में गदर पार्टी और समाचार पत्र दोनों ही लोकप्रिय हो गए।

भारत को आजादी दिलाने के लिए करतार सिंह ने गदर पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर योजनाएं बनानी शुरू कीं। इस कड़ी में उन्होंने शचींद्रनाथ सान्याल, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, रासबिहारी बोस जैसे बड़े क्रांतिकारियों से मिलना शुरू किया। फिर इन्होंने जालंधर में एक सभा का आयोजन किया, जिसमें सभी क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया था। उनके सुझाव पर रास बिहारी बोस पंजाब आकर क्रांतिकारियों के संगठन के अगुआ बने। इसके बाद अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ने की तारीख 21 फरवरी 1915 तय की गई, लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लगने के चलते क्रांतिकारियों ने इसे 19 नवम्बर को करने का निर्णय लिया।

19 वर्ष की उम्र में दी गई फांसी

2 मार्च 1915 को करतार सिंह को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद 13 सितंबर 1915 को करतार सिंह को उनके साथियों के साथ लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उनके और सहयोगी क्रांतिकारियों पर राजद्रोह, डकैती और कत्ल का मुकदमा चलाया गया। कोर्ट ने सभी क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद करतार सिंह को उनके 6 सहयोगियों के साथ 16 नवंबर 1915 को फांसी दी गई। जिस वक्त उन्हें फांसी दी गई, उस वक्त वह महज 19 साल के थे।

करतार सिंह के जीवन पर बनी है फिल्म

इनके जीवन पर एक फिल्म भी बनाई गई है, जिसे वर्ष 2019 में रिलीज किया गया था। इस फिल्म का नाम ‘सराभा – क्राई फॉर फ्रीडम’ है। इस फिल्म के लेखक व डायरेक्टर कवि राज हैं, जिसमें अभिनेता जपतेज सिंह ने करतार सिंह की भूमिका निभाई है। यह फिल्म तीन भाषाओं (अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी) में रिलीज की गई है। फिल्म के अलावा करतार सिंह के जीवन पर कई पुस्तकें भी लिखी गई हैं, जिसमें तूफानों का शाह असवार करतार सिंह सराभा, सिख फ्रीडम फाइटर्स और गदरी बाबे कौन सन शामिल हैं।

भगत सिंह के आदर्श थे करतार सिंह

क्रांतिकारी भगत सिंह, करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श मानते थे और उनकी फोटो अपनी जेब में रखते थे। जिस वक्त भगत सिंह को गिरफ्तार किया गया था, तब उनकी जेब से करतार सिंह की फोटो प्राप्त हुई थी। करतार सिंह सराभा की एक गजल भगत सिंह को बेहद प्रिय थी वे इसे अपने पास हमेशा रखते थे और अकेले में अक्सर गुनगुनाया करते थे:

“यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,
मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा;
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,
यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा;
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,
यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा;
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!
कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा;
तेरी खिदमत में अय भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,
तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा।”

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