महिलाओ को संविधान द्वारा समानता के अधिकार के बावजूद, अधिकतर महिलाओ को झेलना पड़ रहा उत्पीडन.

एक शिशु जब जन्म लेता है तो अपनी माता की गोद से ही उसके जीवन का आरम्भ होता है. धीरे धीरे अपनी माँ की अंगुली पकड़ कर चलना सीखता है. उसकी माता ही उसके जीवन की प्रथम गुरु होती है. माँ का प्रेम अनमोल होता है. हर किसी के जीवन में माँ का योगदान सबसे बड़ा होता है. माँ एक महिला ही हैं, एक महिला के योगदान को किसी तरह भी कम नहीं आंका जा सकता.

प्राचीन काल में सामाजिक कुरीतियों और पुरुष प्रधान समाज के कारण महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया. ऐसा नहीं है कि सारे पुरुष एक समान सोच के थे. राजा राम मोहन राय जैसे समाजसुधारक भी हुए जिन्हीने सती प्रथा का अंत करवाया, उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, पर्दा प्रथा, दहेज आदि कुरीतियां का घोर विरोध किया. उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया.

महिलाओ को संविधान द्वारा समानता के अधिकार के बावजूद, अधिकतर महिलाओ को झेलना पड़ रहा उत्पीडन.

महिला में कितनी शक्ति और योग्यता होती है यह सावित्रीबाई फुले जी ने अपने सुकर्मो द्वारा कर दिखाया था. उन्होंने भारत में महिला शिक्षा और सशक्तिकरण शब्द को भारत में न केवल पहचान दिलवाई अपितु देश में इसको लागू कराने का सारा श्रेय भी इन्ही महान भारतीय महिला सावित्रीबाई फुले को जाता है. उन्होंने अपना पूरा जीवन लडकियों को शिक्षित करने और समाज में सबको बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए लगा दिया था. इसके लिए उन्हें बहुत उत्पीडन झेलना पड़ा.

भारत के संविधान का अनुच्छेद 14 महिलाओं को समानता का अधिकार देता है. अबका भारत महिला को समान अधिकार देता है. भारतीय महिलाएं देश और विदेश में अपने योगदान द्वारा भारत का नाम रोशन कर रही है. लेकिन फिर भी हमारे आसपास, सोशल मीडिया और समाचार पत्रों द्वारा महिलाओ पर अत्याचार की खबरे आती रहती है. इसका कारण अशिक्षा, बेरोजगारी और गरीबी है.


सरकार के साथ साथ हर व्यक्ति का भी दायित्व होता है कि वह अपने आसपास और रिश्तेदारों को समझाए जंहा महिलाओं का उत्पीडन हो रहा हो. महिला का उत्पीडन किसी भी तरह ठीक नहीं है, यह क़ानूनी अपराध है. देश में बहुत सी महिलाए घरेलु हिंसा की समस्या झेल रही है जिनका जीवन नरक से भी बदतर हो जाता है, कई मासूम बच्चियां आज के समय में भी बाल विवाह जैसी कुरीतियों को झेल रही है.


हमारा ये कहना बिलकुल भी नहीं है कि हमे पीड़ित महिला के परिवार को धमकाना चाहिए, हमसे जितना हो सके उन्हें समझाना चाहिए. अगर फिर भी न समझे तो पीड़ित महिला को उसके अधिकार से अवगत कराना चाहिए. आजकल तो राज्य महिला आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग के कार्यालय तक पीड़ित महिला एक फ़ोन कॉल या ईमेल के माध्यम से आसानी से जुड़ सकती है. अगर महिला अशिक्षित है तो एक सामाजिक प्राणी होने के नाते उसकी सहायता जरुर करनी चाहिए.


कई पुरुष भी महिलाओ द्वारा उत्पीडन के शिकार होते है, लेकिन इस तरह की कुछ दोषी महिलाओं के कारण ममता और शक्ति के प्रतीक सभी महिलाओं को गलत नहीं समझा जा सकता. जब हमारे जीवन में किसी भी तरह की समस्या अचानक से आ जाती है तो हम कितना परेशान हो जाते है. यह तो महिलाओं के आत्मसम्मान की बात है.


महिलाओ का सच्चा सम्मान वो ही लोग करते है जो सही में अपने माँ और बहनों का सम्मान करते है. उन्हें महिलाओ के योगदान और योग्यता का पूरा पता होता है. सरकार और एनजीओ महिलाओं के अधिकार के लिए कार्यरत है, समय समय पर उनके द्वारा जागरूकता कैंप चलाये जाते है. लेकिन अशिक्षा, गरीबी और बेरोजगारी आदि के कारण जागरूकता अभियान तक उनकी पहुँच नहीं हो पाती.