नोएडा में सातवें ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन, संदीप मारवाह ने समझाई फोटोग्राफी की महत्तवता

फोटोग्राफी अवलोकन की कला है – संदीप मारवाह

नई दिल्ली। नोएडा में सातवें ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन वर्चुअली करवाया गया। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है जिसकी हम कीमत नहीं समझते, लेकिन पिछले दो साल में पेंडेमिक ने हमे प्रकृति की कीमत सिखा दी है, यदि हम उसको नहीं संभाल पाएंगे तो वो हमारा नाश करने में भी पीछे नहीं हटेगी, इसलिए हमे पेड़ पौधे और स्वच्छ वातावरण हमारे लिए वैसे ही ज़रूरी है जैसे भोजन। बोस्निया और हर्ज़ेगोविना के राजदूत मुहम्मद सेनजिक ने कहा कि “पिछले कुछ समय को मैंने फोटोग्राफी में इस्तेमाल किया और प्रकृति के निकट जाकर उसे कैमरे में कैद किया और समझा की प्रकृति हमे सिर्फ देती है लेकिन यह भी ज़रूरी है की हम उसे क्या देते है, मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है की सातवें ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल नॉएडा में मेरी फोटोग्राफी की वर्चुअल प्रदर्शनी दिखाई गयी।” इस अवसर पर मारवाह स्टूडियो के निदेशक डॉ. संदीप मारवाह के साथ कोमोरोस संघ के वाणिज्य दूतावास के कॉन्सुल जनरल के. एल. गांजु, किर्गीज़ एम्बेसी की अटेचे ऐगरिम जाकिबकोवा, फाउंडर वर्ल्ड लीडर समिट अरिजीत भट्टाचार्य और ऑथर रितु भगत प्रदर्शनी में शामिल हुए।

संदीप मारवाह ने कहा कि कैमरा वो देखता है जो हम नहीं देख पाते और कई बार तो हमारे दिमाग में कुछ और होता है और कैमरे के दिमाग में कुछ और, वाइल्ड लाइफ हो या फैशन शो या प्रकृति सब में कैमरामैन की रचनात्मकता नज़र आती है, आज मुझे बहुत ख़ुशी है की मुहम्मद सेनजिक ने अपने समय का सदुपयोग करते हुए इतनी बेहतरीन फोटो प्रदर्शनी हमे दिखाई।

के. एल. गांजु ने कहा कि मुझे संदीप मारवाह से मिलकर हमेशा ही एक नई ऊर्जा मिलती है और आज ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल में शामिल होकर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है, पहले की बात करे तो पहले रील बनती थी जिसका रिजल्ट बहुत ही बेहतरीन होता था, आज भी आप कोई पुरानी ब्लैक एंड वाइट फोटो देखे और आज की फोटो में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है। ऐगरिम जाकिबकोवा ने कहा कि हर देश का साहित्य उसकी नींव होता है और किर्गीज़ की हिस्ट्री बहुत पुरानी और महान है, मुझे इस फेस्टिवल में भाग लेकर बहुत अच्छा लगा।
अरिजीत भट्टाचार्य ने कहा कि एक आर्टिस्ट होने के नाते अगर में फोटोग्राफ के बारे में बताऊ तो, फोटोग्राफ बहुत कुछ चीज़े बिना कुछ लिखे बयां कर देती है। रितु भगत ने कहा कि फोटो की कोई भाषा नहीं होती उसे समझने के लिए किसी भाषा या बोली का ज्ञान होना ज़रूरी नहीं है, किसी भी फोटो को देखकर वहां के कल्चर को समझा जा सकता है।

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