उन्होंने एक दूसरे को देखा, मुस्कुराए और चूम लिया फंदा…

आज है शहीदी दिवस

नई दिल्ली। आज ही का दिन था। जब भारत के तीन क्रांतिकारियों ने हँसते हँसते मौत को गले लगा लिया था। यह सच है, आज ही के दिन स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और उनके दो साथी राजगुरु और सुखदेव ने देश के लिए अपनी जान गंवा दी थी।

भगत सिंह खुश, कैदी परेशान

भगत सिंह इस बात से भलीभांति परिचित थे कि देश के लिए उन्हें अपनी कुर्बानी देनी होगी। ऐसा बताया जाता है कि लगभग 2 सालो तक जेल में रहने के बावजूद वह बहुत खुश थे। यह बात सुनकर सभी को शौक लगा होगा, लेकिन भगत सिंह की ख़ुशी जानकर भी आप हैरान हो जाएंगे। वह केवल इसलिए खुश थे कि वह देश के लिए जान न्यौछावर कर रहे हैं। जब तीनों को बड़े क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी देने का एलान किया गया तो, सभी कैदी रो रो कर बुरा हाल हो गया था।

फांसी से पहले पढ़ी इनकी जीवनी

फांसी के एलान के बाद एक तरफ पूरे देश मे प्रदर्शन हो रहे थे वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह जी बेहद खुश थे। धीरे धीरे लाहौर में लोगों का जमावड़ा लगने लगा। अंग्रेज समझ गए थे कि तीनों की फांसी के दौरान एक बड़ा प्रदर्शन होगा, इसलिए उन्होंने पहले से ही मिलिट्री तैनात कर दी थी। 

कब था फांसी का दिन

उग्र प्रदर्शन न होने के डर से निर्धारित तारिक से एक दिन पहले ही देश के उन तीनों नायाब हीरो को फाँसी पर लटका दिया गया था। फांसी का दिन 24 मार्च तय किया गया था। जिसके बाद लोगों की आंखों से बचकर उनके शवों को सतलुज नदी किनारें ले जाया गया।

किताब पढ़ने के शौकीन थे भगत सिंह

भगत सिंह को किताबे पढ़ने का बहुत शौक था। उनका किताबों पढ़ने के प्रति जो जुनून था, वो सबको हैरान कर देने वाला था। उन्होंने जेल में रहकर भी कई किताबें पढ़ी थी।

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