नई दिल्ली। वैज्ञानिकों के मुताबिक, दक्षिण अफ्रीका में कोरोना की पहली लहर के दौरान मिले वेरिएंट में से C.1 वेरिएंट की तुलना में C.1.2 वेरिएंट में ज्यादा बदलाव देखने को मिले हैं। यही वजह है कि इस वेरिएंट को वेरिएंट ऑफ इंट्रेस्टन की पद पक रखा गया है।
कोरोना का एक और नया वेरिएंट पाया गया
पूरी दुनिया अभी भी कोरोना से जूझ रही है। वहीं, भारत में तीसरी लहर की आशंका भी जताई जा रही है। इस बीच दक्षिण अफ्रीका को मिलाकर दुनिया के कई देशों में कोरोना का एक और खतरनाक वेरिएंट पाया गया है। कहा जा रहा है कि ये वेरिएंट पहले के मुताबिक ज्यादा खतरनाक है और यह वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा को भी मात दे सकता है।
वैज्ञानिकों का दावा
दक्षिण अफ्रीका में नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज और क्वाजुलु नैटल रिसर्च इनोवेशन एंड सीक्वेंसिंग प्लैटफॉर्म के वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना का C.1.2 वेरिएंट सबसे पहले मई में सामने आया था। इसके बाद अगस्त तक चीन, कॉन्गो, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल और स्विट्जरलैंड में इसके केस देखने को मिले।
जीनोम की बढ़ती संख्या
वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि दुनिया में अब तक मिले वेरिएंट ऑफ कंसर्न और वेरिएंट ऑफ इंट्रेस्टा की तुलना में C.1.2 में ज्यादा म्यू्टेशन देखने को मिला है। वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि यह वेरिएंट ज्यादा खतरनाक हो सकता है और ये कोरोना वैक्सीन से मिलने वाले रक्षा वस्तु को भी चकमा दे सकता है। इस शोध के मुताबिक, द अफ्रीका में हर महीने C.1.2 जीनोम की संख्या बढ़ गई है। मई में जीनोम सिक्वेंसिंग के 0.2 प्रतिशत से बढ़कर जून में 1.6 प्रतिशत , जुलाई में 2 प्रतिशत तक हो गए हैं।
ग्लोबल म्यूटेशन रेट से दोगुना तेज
वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस वेरिएंट का म्यूटेशन रेट 41.8 प्रतिशत है। यह मौजूदा ग्लोबल म्यूटेशन रेट से दोगुना तेज है। स्पाइक प्रोटीन का इस्तेमाल SARS-CoV-2 वायरस मानव कोशिकाओं को संक्रमण करने और उनमें प्रवेश करने के लिए करता है। ज्यादातर कोरोना वैक्सीन इसी क्षेत्र को टारगेट करती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार , म्यूटेशन के बाद N440K और Y449H के वेरिएंट C.1.2 ज्यादा मात्रा में मिले हैं। ये म्यूटेटिड वायरस में बदलाव के साथ-साथ उन्हें एंटीबॉडी और इम्यून रिस्पॉन्स से बचने में मदद करते हैं। ये उन मरीजों में भी देखने को मिला है, जिनमें अल्फा या बीटा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी परिपक्व हुई थी।