
टिकैतनगर (बाराबंकी)। पूरेडलई ब्लाक की ग्राम पंचायत मंगरौडा के प्रधान गुफरान को जिला प्रशासन द्वारा गुंडा एक्ट के तहत छह माह के लिए जिले से निष्कासित करने के आदेश को मंडलायुक्त अयोध्या गौरव दयाल ने निरस्त कर दिया है। आयुक्त ने यह आदेश सुनाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाए हैं।
9 मई को जिला प्रशासन ने प्रधान गुफरान को गाली-गलौज, धमकी और जातिसूचक शब्दों के आरोपों के तहत गुंडा नियंत्रण अधिनियम में जिला बदर करने का आदेश दिया था। लेकिन मंडलायुक्त की जांच में पाया गया कि अधिकतर आरोप पुराने हैं, जिनमें न्यायालय से दोष सिद्ध नहीं हुआ है। साथ ही, हालिया कोई गंभीर आपराधिक गतिविधि भी उनके खिलाफ दर्ज नहीं है।
जल्दबाज़ी और राजनीतिक दबाव में उठाया गया कदम
मंडलायुक्त की टिप्पणी के अनुसार यह कार्रवाई न केवल जल्दबाज़ी में की गई, बल्कि इसके पीछे संभावित राजनीतिक प्रेरणा भी रही। उन्होंने कहा कि अधिकतर मामलों की पृष्ठभूमि राजनीतिक प्रतीत होती है, जिससे प्रशासन की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
गुफरान पिछले 9 वर्षों से ग्राम प्रधान हैं और विकास कार्यों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके निष्कासन से पंचायत के कार्य प्रभावित हुए और कार्यवाहक प्रधान की नियुक्ति भी विवादों में घिर गई थी। ऐसे में जनहित और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दृष्टिगत रखते हुए मंडलायुक्त ने जिला बदर आदेश को रद्द कर ग्राम पंचायत में स्थायित्व बहाल किया है।
जनता ने बताया सत्ता पक्ष की साजिश
ग्रामवासियों और प्रधान समर्थकों ने इस कार्रवाई को सत्ता पक्ष द्वारा विरोधियों को दबाने की साजिश बताया। उनका कहना है कि पंचायत चुनाव से पूर्व गुफरान को निशाना बनाकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की गई।
प्रशासन की निष्पक्षता पर उठे सवाल
इस घटनाक्रम ने जिला प्रशासन की कार्यप्रणाली और निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना ठोस साक्ष्य के कठोर कानूनी कार्रवाई से न केवल व्यक्ति विशेष के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, बल्कि इससे लोकतंत्र और स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं की साख पर भी आंच आती है।