अंतरिक्ष में होड़

कोई भी वैज्ञानिक प्रगति खुशी की वजह बनती है, लेकिन यदि किसी वैज्ञानिक कामयाबी को गोपनीय रखा जाए, तो चिंता होना वाजिब है।

ऐसी ही स्थिति दुनिया में अभी बनी हुई है, क्योंकि चीन ने गोपनीय तरीके से एक ऐसे अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया है, जिसे लौटाकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा।

कक्षा में यान स्थापित करने का चरण वह पूरा कर चुका है, और एक निश्चित अवधि के बाद वह इस यान को चीन में ही किसी जगह उतारेगा। यह प्रयोग अमेरिका भी कर चुका है और चिंता की बात यह है कि अमेरिका ने भी अपने इस अभियान को गोपनीय रखा था।

यह चीनी यान भी अमेरिकी यान बोइंग एक्स-37बी जैसा बताया जा रहा है। अमेरिका ने इसी साल 17 मई को बोइंग एक्स-37बी को अपने छठे अभियान पर भेजा है। दोबारा उपयोग के योग्य यान के निर्माण अभियान में यूरोपीय स्पेस एजेंसी भी लगी है।

अभी जो स्थिति है, उसमें केवल अमेरिका ही इस तकनीक में सफल है, लेकिन चीन के सफल होने के बाद यह होड़ तेज होने की आशंका है।

अमेरिकी विशेषज्ञ भी चिंतित हैं, क्यांकि चीन ने यह नहीं बताया है कि यह किस अभियान का हिस्सा है? हालांकि यह बात उजागर हो चुकी है कि यह विशेष अंतरिक्ष यान चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित जियूक्वुआन सैटेलाइट लॉन्च सेंटर से छोड़ा गया है।

यह यान पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, लेकिन किस कार्य को अंजाम देगा, यह केवल उसके मालिक देश को मालूम है।

कूटनीति और समरनीति का साथ

यदि केवल वैज्ञानिक ढंग से सोचें, तो इस तकनीक में महारत हासिल करना हर उस देश लिए जरूरी है, जो अंतरिक्ष में यान या उपग्रह भेजने की क्षमता रखता है। अव्वल तो इस तकनीक से अंतरिक्ष अभियानों में होने वाले भारी व्यय में कमी आएगी।

एक ही यान एक से अधिक या कई बार इस्तेमाल किया जा सकेगा। अलग-अलग मकसद से कुछ-कुछ समय के लिए यान अंतरिक्ष में भेजना संभव होगा।

इसके अलावा, पृथ्वी की कक्षा में अपनी सेवा पूरी कर चुके अंतरिक्ष यानों या उपग्रहों की भरमार नहीं होगी और अंतरिक्ष में नया कचरा भी कम तैयार होगा। इस तकनीक में महारत हासिल करने में जुटे देशों को यह भी कोशिश करनी चाहिए कि इस तकनीक के जरिए पृथ्वी की कक्षा से कचरे की सफाई की जा सके। चीन ने इस यान के शांतिपूर्ण इस्तेमाल की बात कही है, लेकिन उस पर यकीन न करने की एकाधिक वजहें हैं।

हालांकि, उससे यही उम्मीद रहेगी कि वह अपनी क्षमता का सकारात्मक उपयोग करे। अमेरिका के ऐसे ही अभियान के तहत यह प्रयोग भी चल रहा है कि अंतरिक्ष की कक्षा में ही सोलर एनर्जी को एकत्र कर माइक्रोवेव्स के रूप में धरती पर भेजा जा सके। यह जरूरी है कि न केवल अमेरिका, बल्कि चीन भी अंतरिक्ष ज्ञान का आक्रामक उपयोग न करे।

महामारी खत्म नहीं हुई

भारत भी अंतरिक्ष ज्ञान में आगे है, लेकिन उसकी मंशा कभी भी तकनीक के दुरुपयोग की नहीं रही है और उसके अभियान दुनिया को पता हैं। आशंका है, चीन ऐसे ही अंतरिक्ष यान को परमाणु हथियारों की दृष्टि से सक्षम बनाने में जुटा है और आगामी वर्षों में अंतरिक्ष में परमाणु हथियार तैनात कर देगा।

वह दूसरे देशों के सैटेलाइट और उनके कामकाज को प्रभावित करने में माहिर होना चाहता है। अब दुनिया के अच्छे या विश्वसनीय देशों के लिए अंतरिक्ष विज्ञान में प्रगति और भी जरूरी हो गई है।