दान उत्सव- दिल की सुनने, कुछ करने का समय !

नई दिल्ली। त्याहारों का मौसम जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे हमारे आस-पास की ऊर्जा और उत्साह पूरी तरह से बदलता दिख रहा है। लेकिन इससे पहले कि हम दुर्गा पूजा, दिवाली, क्रिसमस जैसे त्योहारों को मनाने में मशगूल हो जाएं उससे पहले एक और त्योहार है जिसे मनाने के लिए पूरा देश तैयार है। वह है- दान उत्सव, भारत का अपना खुद का त्यौहार, जो अब करीब एक दशक से अधिक पुराना हो चला है। हर साल महात्मा गांधी के जन्मदिन यानी 2 अक्टूबर से शुरू हो कर हफ्ते भर तक चलने वाले इस त्यौहार में सभी क्षेत्रों के लोग एक साथ आते हैं। इस अनूठे उत्सव के संस्थापकों में से एक गूंज इस सप्ताह में अपने हजारों वालंटियर्स के साथ ये त्यौहार मनाता है। इसमें देने की संस्कृति यानी जॉय ऑफ गिविंग को ध्यान में रखते हुए प्राप्तकर्ता की गरिमा का ख्याल रखा जाता है। कोविड में हाशिए पर पहुंच चुके लोगों के लिए गूंज का ये अभियान, ‘दिल की सुनो, कुछ करो’ के लिए लोगों को प्रेरित करता है। दान उत्सव में इस बार देश भर के तीस से अधिक शहर इसमें हिस्सा ले रहे हैं।

‘दिल की सुनो, कुछ करो’, के लिए लोगों को प्रेरित किया

इस मौके पर रमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित और गूंज के संस्थापक, अंशु गुप्ता ने कहा, “हमें लगता है सामान्य तौर पर हर किसी की जिम्मेदारी बनती है कि वो दुनिया को वापस दे और देने का मतलब केवल पैसा ही नहीं है। और भी बहुत सारे तरीके हैं जिनके जरिए लोग अपना योगदान दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि गूंज को काम करते हुए 22 साल से अधिक का वक्त हो चला है और यह सही मायने में उनके लिए कुछ करना है जो हमें बहुत प्रेरित करते हैं। इस साल, जैसा कि दुनिया अभी भी कोविड महामारी के प्रभाव से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही है, गूंज उन लोगों की स्थिति सबके सामने लाने की कोशिश कर रही है जो, हमारे समाज के हाशिये पर हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। गूंज सभी भारतीयों से इस कठिन घड़ी में अपने साथी नागरिकों के साथ खड़े होने की अपील कर रहा है। बकौल अंशु, शहरी बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेते हैं, ग्रामीण बच्चों को हो सकता है कि यह याद नहीं हो कि उनकी कक्षाएं कैसी दिखती हैं, या याद नहीं हो कि पढ़ना और लिखना क्या होता है। फिर भी, पारंपरिक पाठ्यपुस्तकें, नोटबुक, पेंसिल आज भी उनके सीखने के प्रमुख संसाधन हैं। सच मायने में आज हाशिये पर पहुंच चुके लोगों को और बाहर धकेल दिया गया है और आज वे जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तो, ‘दिल की सुनो, कुछ करो’.. आइये मिलजुल कर अपने आसपास देने के विचार को बदलें।

लोंगो को स्वयंसेवा का सही मतलब समझने की जरुरत

दिल्ली के द्वारका के रहने वाले अरविंद अग्रवाल गूंज के एक समर्पित वालंटियर्स में से एक हैं। वो काफी लंबे वक्त से गूंज के लिए कलेक्श कैंप करते आ रहे हैं और दान उत्सव के शुरुआती दिनो से ही वो इसका हिस्सा रहे हैं। उन्होंने एक समान विचारधारा के लोगों के साथ मिलकर एक मजबूत नेटवर्क बनाया है जो इस सालाना इसमें भाग लेते रहे हैं। वह त्योहार के सार को अच्छी तरह समझते हैं और उनका कहना है, “ज्यादातर लोग स्वयंसेवा के सही मायने को नहीं समझते हैं, लोग योगदान तो देना चाहते हैं लेकिन फिर भी वे अपने कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आना चाहते हैं..” इसलिए, इस दान उत्सव में हम आपको प्रोत्साहित करते हैं कि आप अपने आराम क्षेत्र से बाहर निकलें और खुशियां फैलाने के लिए 2 से लेकर 8 अक्टूबर 2021 तक देने के इस त्योहार का हिस्सा बनें.”

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