दहेज़ एक कुप्रथा, जिसका चलन नहीं हो पा रहा खत्म.

दहेज़ एक कुप्रथा है, जिसका आज के समय में भी अंत नहीं हो पा रहा हैं. दहेज़ के चक्कर में अधिकतर लोग, महिलाओ के महत्व और त्याग को भूल जाते हैं. महिला के ससुराल वालो को उस महिला और उसके मायके पर गर्व होना चाहिए, जिन्होंने इतना बड़ा त्याग करके, एक अनजान परिवार से रिश्ता जोड़कर, उसकी पीढ़ी को आगे बढाने और पुरे परिवार का ध्यान रखने का बीड़ा संभाला है.


कई माँ बाप ऐसे भी होते हैं, जो भविष्य में बेटी के बड़े होने पर, विवाह में दहेज़ आदि के डर से, बेटी को पैदा ही नहीं होने देतें हैं, अर्थात कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं. ममता और त्याग का प्रतीक महिला का किसी भी कारण से उत्पीड़न ठीक नहीं हैं. एक मनुष्य को जन्म देने वाली और मनुष्य की जीवनदायिनी को किसी कुप्रथा के जंजीर में बांधना बिल्कुल ठीक नहीं है. हालांकि इस कुप्रथा के खिलाफ सख्त भारतीय कानून है. बावजूद इसके अधिकतर लोगो को महिला के त्याग और ममता के महत्व से ज्यादा, धन का महत्व दिखाई देता है. अगर लोग दहेज़ का मोह छोड़ दें, तो कितनी बेगुनाह महिलाओं और उनके मायके वालो का जीवन भी खुशहाल होगा.

दहेज़ एक कुप्रथा, जिसका चलन नहीं हो पा रहा खत्म.


कहीं न कहीं समाज के प्रतिष्ठित और अधिकतर वे समान्य लोग, जो शादी में अपनी बेटियों को बहुत क़ीमती सामान तो देते ही हैं, लेकिन दहेज़ के कीमती सामान को अपने पूरे रिश्तेदारों और परिचित लोगो को दिखाकर, समाज के अन्य लोगो के लिए बड़ी समस्या उत्पन्न कर देते हैं. जिससे दहेज लोभियों को बढ़ावा मिलता है.


इसमें देश के सभी जिम्मेदार नागरिको को एक होकर आवाज उठानी चाहिए, दहेज़ के खिलाफ सख्त कानून होने के बावजूद भी, हर कोई कानून की लड़ाई नहीं लड़ पाता है. समाज में एक सम्मानित जीवन जीने वाले अधिकतर लोग, जो प्रत्यक्ष रूप से कभी भी दहेज़ की मांग तो नहीं करते, लेकिन उनके बेटों के विवाह में उनके अनुरूप दहेज़ न आने पर, दुल्हन को उसके दैनिक जीवन में बातों बातों में ताने देना एक आम बात होती है. दुल्हन को दो घरों को एक करके चलना पड़ता है. इन बातों को वह अपने माता- पिता और भाई बहन को कह भी नहीं सकती, जिसके कारण उसका मन बहुत ही दुखी रहता है. कहीं न कहीं, यह एक बड़ा क़ानूनी अपराध है. मगर इस तरह के अपराधो की समाज में गिनती ही कंहा होती है.


ऐसा बिल्कुल नहीं है कि दहेज़ के कानून का दुरुपयोग नहीं होता है, बहुत सी महिलाएं, दहेज़ कानून का दुरुपयोग कर अपने पति और ससुराल वालों का उत्पीडन करती है. उन्हें झूठे आरोपों में जेल भिजवा देती हैं. जो सरासर गलत है और बड़ा क़ानूनी अपराध है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी इसका संज्ञान लेते हुए निर्देश दिया कि किसी भी पीड़ित पति और उसके परिवार को केवल शक के आधार पर तुरंत गिरफ्तार नही किया जा सकता है. दहेज़ का दुरुपयोग करने वाली महिलाओं की तुलना में, ससुरालवालों से दहेज़ का उत्पीडन झेलने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है. महिला ममता और त्याग का प्रतीक है इसलिए कुछ अपराधी प्रवृत्ति की महिलाओं के कारण सभी महिलाओं को गलत नहीं समझा जा सकता है.


दहेज़ को सिर्फ और सिर्फ हमारी सकरात्मक सोच ही जड़ से समाप्त कर सकती है. लेकिन यह असंभव है, क्यूंकि समाज में हर मनुष्य एक जैसे नहीं होते हैं. लेकिन समाज में हम सब जिम्मेदार नागरिको को, जो वास्तव में समाज से कुप्रथा के खिलाफ लड़ना चाहते हैं, को अपनी आवाज उठानी चाहिए. देश में अच्छे लोगो की संख्या, बुरे लोगो की तुलना में अधिक है. बस हम सबको एक होकर दहेज़ जैसी कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता है.


हमारा देश के सारे बेटियों वाले परिवारों को यही सलाह है कि वे अपनी बेटियों को दहेज लोभियों से बचाएं. कभी भी दहेज़ की मांग करने वाले लोगो को अपनी बेटियों का हाथ न सौपें, चाहे लड़का डॉक्टर, इंजीनियर, राजनेता आदि कुछ भी हो. जब वे इतना पढ़ लिखकर भी नहीं सुधर पायें तो आगे आपकी बेटी का क्या ध्यान रखेगा.


हर माँ बाप अपनी बेटी की धूमधाम से शादी करना चाहता है, और अपनी हैसियत के अनुसार बेटी को उसके आगे के वैवाहिक जीवन के लिए आर्थिक रूप से मदद करना चाहता है. यंहा तक तो सब ठीक है, लेकिन अपनी बेटी को आगे के जीवन में आर्थिक मदद का दिखावा, पूरे समाज के सामने नहीं करना चाहिए. किसी भी बेटी के परिवार को देखा देखी में कभी भी अपने सामर्थ्य से बाहर जाकर शादी में खर्च नहीं करना चाहिए. अगर आप मानसिक रूप से खुश रहेंगे, तो आपकी बेटी भी अपने ससुराल में खुश रहेगी.


हर इंसान समाज में अपने को अच्छा ही साबित करता है, इसलिए बेटी का रिश्ता हो जाने पर, लड़के वालो के सारे विचार जाने. अपनी बातें और विचार ठोस रूप से लड़के वालो के सम्मुख रखे. खासतौर से दहेज़ के खिलाफ अपने सख्त विचार रखें, चाहे आप कितने भी धनवान हों.