बहकावे में न आएं किसान

कृषि सुधार की दिशा में महत्वपूर्णं माने जा रहे विधेयकों के राज्यसभा से भी पारित होने का मतलब है कि कुछ विपक्षी दल अकारण यह शोर मचा रहे थे कि संपूर्ण विपक्ष उनके खिलाफ है।

यह अच्छा नहीं हुआ कि पर्याप्त संख्याबल जुटाने में असमर्थ रहे विपक्षी दलों ने इन विधेयकों को पारित होने से रोकने के लिए छीना-झपटी का भी सहारा लिया। तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद राज्यसभा के उपसभापति से जिस तरह हाथापाई-सी करते देखे गए, उसे बाहुबल के प्रदर्शन के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता।

इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि संसद के उच्च सदन में संख्याबल का मुकाबला बाहुबल से करने की कोशिश की जाए। कृषि सुधार संबंधी विधेयकों के पारित होने के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल यह माहौल बनाकर आम लोगों और खासकर किसानों को गुमराह ही कर रहे हैं कि सरकार ने ध्वनिमत से विधेयकों को पारित कराकर सही नहीं किया।

यदि उन्हें ध्वनिमत की व्यवस्था स्वीकार्य नहीं थी तो फिर उन्होंने मत विभाजन की मांग क्यों नहीं की?

हैरानी नहीं कि संख्याबल की कमजोरी उजागर होने से बचने के लिए ही यह मांग करने से बचा गया हो। 

तृणमूल कांग्र्रेस के एक सांसद विपक्षी दल कुछ भी कहें, इसमें संदेह नहीं कि कृषि उत्पाद बाजार समिति कानून यानी एपीएमसी एक्ट जिस उद्देश्य के लिए बनाया गया था, वह पूरा नहीं हो पा रहा, क्योंकि मंडी समितियों में आढ़तियों और बिचौलियों का वर्चस्व कायम हो गया है। मुश्किल यह है कि किसान और खासकर छोटे किसान इससे अवगत नहीं कि नई व्यवस्था किस रूप में काम करेगी।

ऐसा लगता है कि किसान नई व्यवस्था का विरोध महज इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि एक तो वे उसके तौर-तरीकों से परिचित नहीं और दूसरे, वे इसे लेकर सुनिश्चित नहीं कि इससे उन्हें वास्तव में लाभ होने वाला है।

देश में करीब 80-85 प्रतिशत किसान छोटे किसान हैं, लेकिन वे यही मानकर चलते हैं कि खेती-किसानी के मामले में बड़े किसान जो कुछ कहते हैं, वही उनके हित में होता है।

उचित यह होगा कि सरकार एमएसपी को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों का खंडन करने के साथ ही ऐसी कोई कानूनी पहल करे, जिससे किसानों के समक्ष यह साफ हो सके कि इस व्यवस्था को खत्म करने की बातें कोरी अफवाह हैं।

जो भी हो, किसानों को ऐसे दलों के बहकावे में आने से बचना होगा, जो कल तक वह सब कुछ करने की जरूरत जता रहे थे, जिसे कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) तथा कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के जरिये किया गया है। यह विधेयक उन छोटे किसानों के लिए बहुत बड़ी राहत बन सकते हैं, जिन्हें छोटी जात होने की वजह से बड़े निवेशक नहीं मिलते।

देश के कुल किसानों में से 86 फीसदी लघु और सीमांत किसान हैं। नए विधेयक की राह आसान होने से इन किसानों तक पहुंचने वाले निजी निवेश की राह भी आसान हो जाएगी।

केवल यही एक आंकड़ा यह समझने के लिए काफी है कि कृषि क्षेत्र में इन नए विधेयकों का कितना बड़ा सकारात्मक असर दिखाई देने वाला है। आम तौर पर छोटे किसानों की उपज इतनी कम होती है कि उसे मंडियों तक ले जाना फायदे का सौदा नहीं होता।

बिचौलिए इस मजबूरी का फायदा उठाकर दशकों से छोटे किसानों का शोषण करते आए हैं, लेकिन नई व्यवस्था आने से अब निजी कंपनियां छोटे किसानों के खलिहानों तक पहुंच सकेंगी।

इससे उत्पादन से निर्यात तक के रास्ते आसान हो सकेंगे और छोटे किसानों को शोषण की जगह अपने परिवारों का उचित ‘पोषण करने का सपना सच हो सकेगा।