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संघर्ष व बलिदान चांदनी चौक की पहचान- Amar Bharti Media Group एक्सक्लूसिव

संघर्ष व बलिदान चांदनी चौक की पहचान

चांदनी चौक दिल्ली की प्रसिद्ध जगहों में से एक है। यह कपड़े व खाने- पीने की चीजो को लेकर पूरे देश में शुमार है। लेकिन क्या हम जानते है कि यहां एक ऐसी भी जगह है जो किसी के बलिदान की निशानी है ? क्योंकि हमें लाल किला, ताजमहल आदि के बारे में तो शुरू से पढ़ाया या ज्यादातर किताबो में भी इनके बारे में मिल जाता है। परंतु कुछ जगह भारत में आज भी ऐसी है जिन पर यदि गहन अध्यन किया जाए तो वह भी ऐतिहासिक परिस्थितियों के बारे में बताती है। ऐसी ही एक निशानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्तिथ है। जिसे शीशगंज साहिब के नाम से जाना जाता है। दिल्ली में बहुत से गुरुद्वारे ऐसे है जो इतिहास के मार्मिक दृश्यों को साझा करते है। लेकिन हम सिर्फ घूमने के उद्देश्य से जाते है। जिसके कारण हम कुछ जान नही पाते। शीशगंज साहिब गुरुद्वारा नौवे गुरु के बलिदान की निशानी है। सिखों के नौवें गुरु जिन्हें श्री गुरु तेग बहादुर के नाम से जाना जाता है।

कहते है कि जब जब धरती पर पाप बढ़ा है, तब तब भगवान एक नए अवतार के रूप में धरती पर आए है। ऐसा ही हुआ सन् 1658 से 1707 के बीच जब औरंगजेब ने हिंदुस्तान पर राज किया। पूरे शासन को अपने नियंत्रण में लेने के लिए उसने अपने पिता शाहजहाँ को गिरफ़्तार कर लिया और अपने भाइयों को मरवा दिया। वह चाहता था कि पूरे हिंदुस्तान से हिंदुत्व को मिटाकर इस्लाम धर्म फैलाना। भारत में कई जगह ऐसी है जहां औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाए जैसे मथुरा (केशव देव), गुजरात (सोमनाथ), उड़ीसा( जगन्नाथ पूरी), बनारस ( काशी विश्वनाथ) तथा बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि के अनेक मंदिर। इन सब के साथ ही उसने हिन्दुओ पर अत्याचार करने शुरू कर दिए । उसने अपने अधिकारियों को उनके ( हिन्दुओ) माथे से तिलक हटाने और जनेऊ उतार कर ज़बरदस्ती मुसलमान बना दिया। जब जुर्म बढ़ने लगा तो तो कुछ लोगो ने इस्लाम को स्वीकार लिया व जिन लोगो ने उसका विरोध किया तो उन्हें अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी। अत्याचार इतना बढ़ गया कि अब लोग झेल नही पा रहे थे। अपने और अपने देश की खातिर पूजा अर्चना करने के बाद उन्हें बस एक ही उम्मीद थी। इस परिस्तिथि से केवल गुरु तेग बहादुर जी ही निकाल सकते है। क्योंकि इससे पहले भी सिख गुरुओ ने मुगलो का मुकाबला किया है जिसमे उन्हें सफलता मिली थी। इसी उम्मीद से 500 कश्मीरी पंडितों के एक समूह उनके पास गए और उन्हें औरंगजेब के द्वारा किये जा रहे दुराचारी व्यवहार के बारे में बताया। गुरु जी इस्लाम के खिलाफ नही थे । इतिहास में ऐसे कई बाते है जो मुसलमानों के प्रति प्यार को दर्शाते हैं। जैसे ” मरदाना” जो एक मुस्लिम परिवार के थे, जो हमेशा गुरु नानक के साथी रहे, ऐसी ही एक गुरु ग्रन्थ में कई वाणी है जो मुस्लिम पीरो द्वारा दी गयी है। यहां तक कि स्वर्ण मंदिर की नींव भी मुस्लिम पीर द्वारा रखवाई गयी थी।

जब गुरु तेग बहादुर जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने पूरे हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी देंने का फैसला लिया। और सभी पंडितो से कहा कि उनसे जाकर कहो कि पहले गुरु तेग बहादुर को इस्लाम करने के लिए मनाए, उसके बाद हम सभी इस्लाम कबूल कर लेंगे। औरंगजेब यह सुनकर उत्तेजित हो गया और सोचने लगा कि अकेले इंसान को मनाना बेहद आसान होगा। इसके लिए बादशाह ने गुरुजी की गिफ्तारी के एलान कर इनाम भी घोषित कर दिया।

उनको मनाने के लिए उसने गुरु जी के शिष्यों पर अत्याचार करना शुरू किया। लेकिन उनके अत्याचारों के कारण गुरु जी के तीन शिष्य शाहिद हो गए लेकिन काजी के सामने झुके नही। इसके बाद उसने गुरु जी के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। उन्हें बहुत सी प्रताड़ना झेलनी पड़ी। लेकिन उनके सामने झुके नही। यह देखकर बादशाह ने घोषणा कर दी कि गुरु जी कि हत्या कर दी जाए । तभी सब ठीक होगा। गुरु जी चांदनी चौक के पास एक पेड़ के नीचे बैठे थे। तभी वहां जल्लाद आया और गुरु जी के सर को धड़ से अलग कर दिया।

यह देखकर वहां हाहाकार मच गया। जैसे तैसे बचते बचाते गुरु जी के शरीर की वहां से ले जाया गया। जहां गुरु जी ने क़ुरबानी दी थी। आज वह जगह शीशगंज साहिब के नाम से जानी जाती है। इसी के साथ ही जहां गुरुजी का अंतिम संस्कार हुआ उसे आज रकाबगंज गुरुद्वारे के नाम से जाना जाता है।

हमे अपने इतिहास से परिचित होना चाहिए। जानना चाहिए कि किस तरह हमारे देश की रक्षा के लिए गुरुओ न कुर्बानियां दी। कैसे उन्होंने एक धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। अपने धर्म व अपनी आज़ादी के लिए हर व्यक्ति लड़ता है, परन्तु किसी और धर्म की रक्षा के लिए दी गयी कुर्बानी की मिसाल दुनिया मे दूसरी नही है। इसी तरह औरंगजेब का हिन्दू धर्म मिटाने का सपना, गुरुजी की शहीदी से चूर चूर ही गया। भारतीयों को गुरु तेग बहादुर जी ने एक नया जीवन दिया।