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अपराध को संरक्षण - Amar Bharti Media Group सम्पादकीय

अपराध को संरक्षण 

#आठ पुलिसवालों की हत्या के बाद छह दिन से फरार गैंगस्टर विकास दुबे की गुरुवार सुबह उज्जैन से गिरफ्तारी हुई। इसे पुलिस की कार्रवाई कम और विकास दुबे का सोचा-समझा सरेंडर ज्यादा माना जा रहा है। वजह यह कि जितने आराम से उसकी महाकाल मंदिर से गिरफ्तार हुई, वह कई सवाल खड़े कर रही है। छह दिन तक वह चार राज्यों में घूमता रहा। इनमें से तीन राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार है। विकास दुबे ने इस दौरान 1250 किलोमीटर का सफर बाइक, ट्रक, कार और ऑटो से तय किया।

यूपी पुलिस के 100 जवान उसकी तलाश में थे, लेकिन वह गिरफ्त से दूर रहा। उसे आखिरकार महाकाल मंदिर के गार्ड ने पहचाना और निहत्थे सिपाहियों ने पकड़ लिया।कानपुर में हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे की करतूत भले ही आज राजनीतिक दलों को गुस्से से भर रही हो, मगर वह यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर प्रदेश में कोई भी अपराधी कानून से बड़ा कैसे हो गया? कानपुर की घटना पर पूरा देश हैरान है। यह घटना उत्तर प्रदेश के उस शहर में हुई है जो राजधानी से कुछ घंटों की दूरी पर है और सरकार कानून-व्यवस्था के बड़े-बड़े दावे कर रही है।

सच कहें, तो यह घटना सरकार और कानून दोनों के मुंह पर तमाचा है। एक अपराधी देखते-देखते इतना बड़ा हो गया और पुलिस सोती रही, यह संभव नहीं है। ऐसा तभी होता है, जब किसी अपराधी को या तो पुलिस संरक्षण दे या फिर राजनीति। वैसे भी यूपी में किसी भी अपराधी को राजनीतिक संरक्षण देने का लंबा इतिहास रहा है। उत्तर प्रदेश में राजनीति और अपराध जगत का बेहद करीबी रिश्ता रहा है। यूपी की राजनीति में अतीक अहमद को एक खतरनाक बाहुबली नेता के तौर पर जाना जाता है। वो फूलपुर से सांसद रह चुका है। उस पर हत्या की कोशिश,अपहरण, हत्या के करीब 42 मामले दर्ज हैं। मुतार अंसारी माफिया-डॉन होने के साथ राजनेता भी है। अंसारी को बसपा ने खूब खाद-पानी दिया। मगर जब उसने मायावती को चुनौती दी तो 2010 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के पैतृक निवास प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील के बारे में कहा जाता था कि राज्य सरकार की सीमाएं यहां खत्म हो जाती हैं, क्यूंकि वहां उसका अपना ही राज चलता था।

जौनपुर के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता धनंजय सिंह के बारे में कहा जाता है कि पुलिस ने एनकाउंटर की घोषणा कर दी थी, लेकिन उसने राजनीति में शरण लेकर खुद को बचाया। ऐसे और न जाने कितने चेहरे हैं, जिन्होंने कानून के फंदे से बचने के लिए राजनीति का सहारा लिया और हमारी राजनीति और राजनेताओं ने सत्ता के फेर में उन्हें अपना भी लिया।

आज कानपुर कांड के बाद लगभग हर पार्टी मारे गए पुलिसकर्मियों के परिवार को न्याय देने का विलाप कर रही है, मगर वह यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि आखिर यूपी का यह हाल हुआ तो कैसे। विकास दुबे को ही लें, तो उसकी पैठ हर राजनीतिक दल में होती थी। विकास दुबे कई राजनीतिक दलों में भी रहा है, जो आज घटना पर आक्रोश जता रहे हैं।