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दिशाहीन कांग्रेस- Amar Bharti Media Group सम्पादकीय

दिशाहीन कांग्रेस

सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बने हुए एक वर्ष हो गया, लेकिन इस बारे में अब भी कुछ पता नहीं कि पार्टी पूर्णकालिक अध्यक्ष चुनने के लिए तैयार है या नहीं? कांग्रेस के कुछ नेता राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनके इस विचार को पुरजोर समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है।

कांग्रेस भले ही यह तय न कर पा रही हो कि उसका अगला अध्यक्ष कौन बने, लेकिन उसके तमाम नेता यह उम्मीद पाले हुए हैं कि 2014 और 2019 की लगातार दो पराजयों के बाद भी हम 2024 में केंद्र की सत्ता में आ जाएंगे- ठीक वैसे ही जैसे 2004 में आ गए थे।

सवाल है कि क्या यह संभव है? वर्ष 2004 में कांग्रेस इसलिए सत्ता में आ गई थी, क्योंकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने ‘फीलगुड में मगन होकर अपने कुछ पुराने सहयोगी दलों को खुद से दूर कर दिया था। एक तरह से 2004 की जीत में खुद कांग्रेस की कोई खास भूमिका नहीं थी।

2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की करारी हार के कारणों का पता लगाने के लिए एके एंटनी के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई थी, लेकिन कोई नहीं जानता कि उसकी रिपोर्ट पर कोई विचार क्यों नहीं हुआ? यदि विचार हुआ होता तो शायद कांग्रेस अपनी उन गलतियों को ठीक कर पाती, जिनके चलते उसे ऐतिहासिक पराजय का सामना करना पड़ा।

अब जब कांग्रेस का तिनका-तिनका बिखरता जा रहा है, तो इस सबसे पुराने दल के नेता आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हैं। कांग्रेस का एक हिस्सा लगातार दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के लिए संप्रग सरकार के कुछ मंत्रियों को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो दूसरी ओर कुछ पूर्व मंत्री कह रहे हैं कि संगठन की कमजोरी के कारण हम मोदी सरकार की विफलताओं को जनता तक नहीं पहुंचा सके।

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कांग्रेस अपनी दुर्दशा को लेकर चाहे जैसे आत्ममंथन करे या फिर न करे, लेकिन यदि यह मानकर चला जा रहा कि गलतियां केवल संप्रग शासन के दौरान हुईं तो इसका मतलब है कि दीवार पर लिखी इबारत पढऩे से इन्कार किया जा रहा है।

सच तो यह है कि गलतियां सत्ता से बाहर होने के बाद भी हु ईं और इसी कारण 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को शर्मनाक पराजय से दो-चार होना पड़ा। यदि 2014 की हार के लिए मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी जिम्मेदार हैं तो 2019 की पराजय की जिम्मेदारी राहुल गांधी को लेनी होगी।

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कांग्रेस की बैठक में जिस तरह यह मांग उठी कि राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाया जाए, उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पार्टी के पास और कोई सक्षम नेता नहीं? यदि राहुल को फिर पार्टी अध्यक्ष बनाने की जरूरत आ गई है तो फिर उन्होंने यह पद छोड़ा ही क्यों था? जो कांग्रेसी नेता यह रेखांकित कर राहुल को फिर अध्यक्ष बनाना चाह रहे हैं कि वह बहुत मेहनत कर रहे हैं, वे शायद यह समझने को तैयार नहीं कि निरर्थक मेहनत का कोई मतलब नहीं होता।

वास्तव में कांग्रेस की समस्या केवल यह नहीं कि वह अपनी गलतियों पर गौर करने को तैयार नहीं, बल्कि यह भी है कि वह परिवार से आगे और कुछ देखने की दृष्टि खो चुकी है।