अंधविश्वास और आस्था में क्या अंतर है.

हर इंसान को जीवन में आगे बढ़ने के लिए सकरात्मक होना बहुत ही जरुरी है. पृथ्वी में किसी का भी जीवन निश्चित नही है. बिना सकारात्मकता के कोई भी इंसान अपना जीवन नही जी सकता है. आस्था सकारात्मकता का आधार है. अधिकतर लोग आस्तिक होते हैं और आस्था में विश्वास रखते है. लेकिन बहुत से लोग आस्था और अंधविश्वास में अंतर को नहीं समझते हैं. जिससे अंधविश्वास के जाल में फंस कर, अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं.

नास्तिक इंसान आस्था में विश्वास नही रखता है, लेकिन अपना जीवन जीने के लिए आस्था के आधार सकरात्मकता को जरुर मानता है. लेकिन देश में नास्तिक इंसानों की तुलना में आस्तिक इंसानों की संख्या अधिक है, जिनमे से अधिकतर लोगो को अंधविश्वास और आस्था में फर्क ही नहीं पता है. जिसके कारण ऐसे लोग खुद तो अंधविश्वास के जाल में फंस कर अपना जीवन तो बर्बाद करते ही हैं और अपने सगे संबंधियों, आसपास के लोगो को भी अपने नकरात्मक व्यवहार से परेशानी में डाल देते हैं.

अंधविश्वास और आस्था में क्या अंतर है.

देश में चल रहे भ्रष्टाचार, अपराध, बेरोजगारी आदि के कारण. एक शिक्षित व्यक्ति भी अंधविश्वास की दुकान चलाने वाले बाबाओं के जाल में फंस जाता है, सरकार ने नागरिको को आस्था और अंधविश्वास के बीच फर्क को समझाना चाहिए. इसके लिए मीडिया आदि के माध्यम से सरकार ने लोगो को जागरूक करना चाहिए.

अंधविश्वास लोगो की तार्किक क्षमता को क्षति पहुँचाता है, आपने अक्सर व्हाट्सएप में ऐसे मैसेज को वायरल होते देखा होगा, जिसमे भगवान के नाम से ऐसे डरावने मैसेज भेजे जाते है, जिनको आगे 20 लोगो को भेजने के लिए कहा जाता है, उस मैसेज में साफ साफ लिखा होता है कि अगर मैसेज को आगे नही भेजा गया तो, आपको बुरी खबर सुनने को मिलेगी. जब इस प्रकार के मैसेज, लोगो तक पहुचते हैं तो अधिकतर लोग जिनमे शिक्षित लोगो की भी अच्छी खासी संख्या होती है, वे भी डर के मारे ऐसे मैसेज को अपने परिचित लोगो को भेजने लगते हैं. जो कि सरासर गलत है.

जीवन जीने के लिए आस्था में विश्वास रखना बहुत ही जरुरी है, बड़े से बड़े वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, राजनेता आदि से लेकर आम व्यक्ति आस्था में विश्वास के कारण ही अपने कार्य को सकरात्मकता से करते हुए देश, विदेश में अपना योगदान दे पाते हैं. जब हम बहुत परेशान होते हैं और मंदिर में भगवान पर विश्वास रखते हुए जाते है, तो हमे एक अलग ही आंतरिक शांति का अनुभव होता है. यही आस्था है, मगर अपनी समस्या का अंत करने के लिए हमे अपने कर्म का उपयोग करना ही होगा. आस्था हमे यह विश्वास दिलाती है कि हमारे सकरात्मक और नकरात्मक दोनों प्रकार के कार्यो को भगवान देख रहें है, जो उसी के अनुरूप हमे फल देंगे. अधिकतर समझदार शिक्षित और अशिक्षित लोग इसी सकरात्मकता के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं.

इसके विपरीत, जब आस्था के आधार “सकरात्मकता” का अधिकतर लोग अपने कर्मो द्वारा सदुपयोग नही करते हैं और अपने रुके हुए कार्यो को पूरा कराने के लिए, अपने आसपास के बाबाओं के चक्कर में फंसकर, अपना कर्म करना बंद कर देते हैं. तो वह अंधविश्वास के जाल में फंस जाते हैं. यहीं से उनका बुरा वक्त शुरू हो जाता है. जिसके कारण अंधविश्वास की दुकान चलाने वाले बाबाओं के पास शिक्षित और अशिक्षित दोनों लोगो की भारी तादात मिलती है.

आस्था और अंधविश्वास के बीच के अंतर को समझने में कई बार, व्यक्ति का देश में चल रही भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अपराध आदि बड़ी समस्या के कारण अंधविश्वास के जाल में फंस जाना आम बात है. लेकिन एक जिम्मेदार और समझदार नागरिक, जो अंधविश्वास के जाल से बाहर निकल गया है और आस्था के आधार “सकरात्मकता” का अपने कर्म में उपयोग को समझ गया है, वह जरुर अपने परिचित और समाज के लोगो को अधिक से अधिक जागरूक करेगा. यही एक सच्चे नागरिक का अपने देश के लिए कर्तव्य है.


आम नागरिको के साथ साथ अंधविश्वास जैसी बड़ी सामाजिक समस्या को दूर करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सरकार की ही है. सरकार में ईमानदार राजनेताओ का चयन, नागरिक ही करते हैं. इसलिए सभी जिम्मेदार नागरिको ने अपने मताधिकार का पूरा सदुपयोग करना चाहिए. तभी समाज की सारी समस्याओ का पूरा हल निकलेगा.