हम सबको अपने अन्नदाता पर गर्व होना चाहिए, कितनी विपरीत परिस्थितियों से गुजरने के बाद, हमारे किसान(अन्नदाता) फसल उगातें हैं, उन्हें अपने फसलो का सही मुनाफा ही नहीं मिल पाता है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि वह अपनी लागत तक वसूल नहीं कर पातें हैं. हद तो तब हो जाती है जब बाढ़ और सूखा के कारण उनकी फसल ही ख़राब हो जाती है. इतना आसान नहीं है उनका जीवन, उन्हें आर्थिक और मानसिक दोनों समस्याओ से होकर गुजरना पड़ता है.
अन्नदाता की भी हमारे तरह अपने परिवार के भरण पोषण और शिक्षा आदि की जिम्मेदारी होती है, फसल उगाने के लिए उन्हें ऋृण आदि लेना पड़ता है, जिसके ब्याज को चुकाने का मानसिक दबाव और फसल का उनके अनुसार पैदावार न होने का डर, उनको हमेशा बना रहता है.
हालाकि सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाएं लाकर अन्नदाताओं को लाभान्वित करने की पूरी कोशिश कर रही है. बावजूद इसके किसानो की समस्या का पूरा समाधान नही हो पा रहा है. कई ऐसे भी किसान हैं जिन्हें क्षतिग्रस्त हुई फसलो की बीमा राशि का भुगतान नहीं मिल पाया, जिसके लिए वह संघर्ष कर रहे है. उनका कहना है कि बीमा कंपनी इसमें पूरा मुनाफा तो उठा रही हैं. मगर किसानों के हितों का पूरा ध्यान नहीं रख रही हैं.
किसानो को उनकी फसलो का सही दाम नहीं मिल पाता है, बिचोलियों द्वारा उनका सारा लाभ अप्रत्यक्ष रूप से ले लिया जाता है. जंहा बिचोलियों को किसानो के फसलों का शहरो में उच्च दाम मिलते है, वंही अन्नदाता को अपनी फसल की लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो जाता हैं. सरकार को अन्नदाता की समस्या का समाधान करना चाहिए. अन्नदाता भी अपने परिवार को अच्छा जीवन देना चाहते हैं, इतनी मेहनत करने के बाद भी कर्जदार का जीवन व्यतीत करते हुए, न चाहकर भी बहुत से किसान डिप्रेशन में आकर, आत्महत्या तक कर लेते हैं.
इंडियन जर्नल ऑफ सायकाइट्री में 2017 में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, “कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में प्रमाण मिले हैं कि सामाजिक और आर्थिक तंगहाली आत्महत्या के मूल कारण है, इसी के कारण उन्हें अत्यधिक मानसिक तनाव होता है.
अन्नदाता बहुत मजबूत होते हैं, वे इतनी आसानी से अपने जीवन से हार नहीं मानते है. उनपर सबका जीवन निर्भर करता है. उनकी समस्याओ का हल जल्द से जल्द होना चाहिए. कितने कष्ट से होकर गुजरना पड़ता होगा, अन्नदाता को जिन्हें सरकार और उनके अन्न को ग्रहण करने वाले भारतीय नागरिको की अनदेखी द्वारा बहुत ही कष्टदायक जीवन जीना पड़ता है.
किसानो की आर्थिक और मानसिक समस्यायों के लिए जागरूक और जिम्मेदार मंत्रियों द्वारा योजनाएं बनायीं जाती हैं और उन्हें लागू भी किया जाता है. जिम्मेदार मंत्रियो का मंत्रालय आदि बदलते ही नए मंत्री के द्वारा उस योजना पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता है. जिससे पैसा और समय दोनों की बर्बादी होती है. आप महाराष्ट्र सरकार द्वारा शुरू की गई प्रेरणा योजना का ही उदाहरण ले सकते हैं, जो किसानो के लिए खोली गई एक हेल्पलाइन है. जिसका मकसद आत्महत्या करने वाले किसानों की मानसिक स्थिति का पता लगाना है। संकटग्रस्त किसान इस हेल्पलाइन नंबर पर फोन करके मनोवैज्ञानिक की मदद मांग सकते हैं. इसमें शुरू में किसानो के समस्या का जितना ध्यान रखा गया, बाद में वंहा सरकारी साइकेट्रिक डॉक्टर के पदों को न भरने के कारण, किसान को इस योजना का लाभ पहले की भांति मिलना कम हो गया था.