
भारत एक ऐसा देश है जिसकी आत्मा इसकी सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों में बसती है। इन धरोहरों में कई ऐसे स्थल हैं जो केवल तीर्थ या पर्यटन स्थल भर नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं, मान्यताओं और सभ्यता की गहराइयों को अपने भीतर समेटे हुए हैं। गुजरात के जूनागढ़ जिले में स्थित गिरनार पर्वत भी ऐसा ही एक स्थल है, जिसे भारत के पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मानचित्र में अत्यंत श्रद्धा और गौरव के साथ देखा जाता है।
इसी गिरनार पर्वत की बहुआयामी गरिमा को समर्पित एक महत्वपूर्ण पुस्तक “गिरनार : सत्य और तथ्य” हाल ही में प्रकाशित हुई है, जिसे प्रसिद्ध लेखिका, चिंतक और जैन विदुषी डॉ. प्रभाकिरण जैन ने लिखा है। यह कृति एक सतर्क शोध, गहन अध्ययन और व्यापक अनुभव का निचोड़ है, जिसमें लेखक ने गिरनार पर्वत से जुड़े धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक पहलुओं को तथ्यात्मक रूप में सामने रखा है।
गिरनार : एक तीर्थ नहीं, एक जीता-जागता इतिहास
गिरनार पर्वत को प्राचीन काल से ही विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। यह न केवल जैन धर्म के लिए पवित्र स्थल है, बल्कि हिंदू परंपरा, विशेषकर श्रीकृष्ण और यदुवंश से जुड़ी कथाओं, भगवान नेमिनाथ की तपस्थली, तथा अनेक संतों-मुनियों के तप-त्याग की स्थली के रूप में भी जाना जाता है। डॉ. प्रभाकिरण जैन ने इस पुस्तक में इन विविध पहलुओं को केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि साक्ष्यों, ग्रंथों और ऐतिहासिक तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया है।
उन्होंने दिखाया है कि कैसे गिरनार एक ऐसा स्थल है जहाँ धर्म, अध्यात्म, संस्कृति और पुरातत्व का संगम होता है। यह पर्वत अपने भीतर कई युगों के पदचिह्न समेटे हुए है — प्राचीन सभ्यताओं की आहट, ऋषियों की तपश्चर्या, राजाओं के शासनकाल के शिलालेख, और जनमानस की गहरी आस्था सब यहाँ किसी न किसी रूप में जीवंत हैं।
शोधपरक लेखन का उदाहरण
डॉ. प्रभाकिरण जैन ने इस पुस्तक को किसी विशिष्ट धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा है, बल्कि एक निष्पक्ष शोधकर्ता के रूप में हर पहलू की गहराई में जाकर मूल ग्रंथों, शिलालेखों, पुरातात्विक प्रमाणों और स्थानीय परंपराओं का हवाला देते हुए सामग्री प्रस्तुत की है। यह पुस्तक केवल आस्था का दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह बताती है कि आस्था और इतिहास एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।
पुस्तक में भगवान नेमिनाथ की जीवनगाथा को विशेष स्थान दिया गया है। उन्होंने कैसे गिरनार पर तप किया, कैसे यह स्थल जैन परंपरा में सर्वोच्च तीर्थ बना, इन सभी बातों को अत्यंत संवेदनशीलता और प्रमाणिकता से प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही श्रीकृष्ण और यदुवंश से जुड़ी गिरनार की कथाओं को भी तुलनात्मक ढंग से रखा गया है जिससे यह स्पष्ट होता है कि गिरनार केवल किसी एक धर्म का स्थल नहीं, बल्कि भारतीय चेतना का साझा तीर्थ है।
सांस्कृतिक व पुरातात्विक दृष्टि
पुस्तक की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें केवल धार्मिक पक्ष ही नहीं, बल्कि गिरनार की सांस्कृतिक और पुरातात्विक महत्ता को भी भरपूर जगह दी गई है। लेखक ने यहाँ के शिलालेखों, स्थापत्य कला, प्राचीन मंदिरों, गुफाओं और मूर्तियों का विवरण अत्यंत विद्वत्तापूर्ण शैली में दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि किस प्रकार गिरनार के विभिन्न स्थल गुप्त, मौर्य, और पाटलिपुत्र के बाद के राजवंशों से जुड़े रहे हैं।
इसके साथ ही डॉ. जैन ने यह भी दिखाया है कि कैसे आधुनिक शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों ने गिरनार को लेकर नये तथ्य उजागर किए हैं, जो इसे केवल आस्था का विषय नहीं रहने देते, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पुनःस्थापित करते हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया है कि गिरनार जैसे स्थलों को धार्मिक पर्यटन से आगे जाकर शोध और संरक्षण की दृष्टि से भी देखे जाने की आवश्यकता है।
कवर पृष्ठ : विषय का प्रतिबिंब
“गिरनार : सत्य और तथ्य” का कवर डिज़ाइन भी पुस्तक की विषयवस्तु के अनुरूप है। इसमें गिरनार पर्वत की छवि को धार्मिक और स्थापत्य तत्वों के साथ प्रस्तुत किया गया है, जो पहली ही नजर में यह स्पष्ट कर देता है कि यह पुस्तक किसी सतही विवरण से आगे जाकर एक गंभीर अध्ययन का परिणाम है। कवर न केवल दृष्टिगत सौंदर्य प्रदान करता है, बल्कि एक दृढ़ बौद्धिक आश्वासन भी देता है कि यह पुस्तक पढ़ने योग्य ही नहीं, संग्रहणीय भी है।
पाठकों के लिए उपयुक्तता
यह पुस्तक उन सभी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो धर्म, इतिहास, संस्कृति, दर्शन और पुरातत्व में रुचि रखते हैं। विशेष रूप से शोधार्थियों, इतिहासकारों, विद्यार्थियों, अध्यापकों, पुरातत्ववेत्ताओं और जैन धर्म में रुचि रखने वालों के लिए यह एक ऐसा संदर्भ ग्रंथ है जो उन्हें केवल ज्ञान ही नहीं देगा, बल्कि एक संतुलित दृष्टिकोण भी प्रदान करेगा।
पुस्तक का भाषा-शैली सरल, सुसंगत और सहज है। यह न तो अति बोझिल है, न ही बहुत हल्की। इसमें कहीं भी पूर्वग्रह, अंधविश्वास या अतिरंजना नहीं मिलती, जो इसे एक गंभीर पाठ के रूप में स्थापित करता है।
“गिरनार : सत्य और तथ्य” केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है। यह दिखाता है कि किस तरह एक पर्वत — जो हजारों वर्षों से मानवता, धर्म और संस्कृति का साक्षी रहा है — आज भी अपने भीतर नये शोध, नये विमर्श और नये दृष्टिकोण के लिए आमंत्रण देता है।
डॉ. प्रभाकिरण जैन ने अपनी विदुषी लेखनी से इस ग्रंथ को केवल गिरनार की कथा नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा की पुकार बना दिया है। यह पुस्तक निश्चित रूप से आज की पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने, अतीत को समझने और भविष्य की दिशा निर्धारित करने में एक सशक्त माध्यम बन सकती है।
यदि आप भारतीय सभ्यता को जानने की ईमानदार कोशिश कर रहे हैं — गिरनार आपके लिए एक अध्याय नहीं, एक पूरी किताब है। और यह किताब अब आपके सामने है — “गिरनार : सत्य और तथ्य”। इसे पढ़ना एक यात्रा है — इतिहास से वर्तमान की ओर, आस्था से तर्क की ओर, और अंततः ज्ञान से आत्मबोध की ओर।