विस्तारवाद पर वैश्विक प्रहार

#युद्ध की आशंका की आहट से पहले मोर्चे पर पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नाम लिये बिना बेहद सख्त अंदाज में चीन को भारत के ‘मन की बात’ बता दी। यह दुश्मन की चौखट पर पहुंचकर, उसका दरवाजा खुलवाकर, उसकी आंख में आंख डालकर समझाने जैसा है कि अब उसकी कोई भी गलती माफी के काबिल नहीं होगी, और किसी भी ऐसी-वैसी गुस्ताखी की बड़ी कीमत चुकानी होगी। शांति को चुनौती देने वाले ऐसे खतरे का अलर्ट प्रधानमंत्री ने पिछले साल सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए भी दिया था। तब प्रधानमंत्री ने दुनिया को बुद्ध और युद्ध का दर्शन समझाया था। उस संदेश में भी एक परोक्ष चेतावनी थी पाकिस्तान के लिए, कि भारत बुद्ध को मानता जरूर है, लेकिन सीमा पर शांति खतरे में पड़ेगी तो हम युद्ध से भी पीछे नहीं हटेंगे। नीमू बेस कैम्प से जवानों का हौसला बढ़ाने के बीच प्रधानमंत्री ने चीन के विस्तारवाद को लेकर ठीक ही कहा है कि जब विस्तारवाद जुनून बन जाए तो वह विश्व शांति के लिए खतरा बन जाता है।

चीन स्वाभाविक रूप से हमारा पड़ोसी नहीं है, बल्कि वो जबरन हमारे पड़ोस में आकर बैठ गया है। 50 के दशक में उसने तिब्बत पर कब्जा जमाया, जहां से वो सिक्किम को मान्यता देने के बावजूद घुसपैठ से बाज नहीं आता है। यही हाल उत्तराखंड का है, जहां नक्शे में अदला-बदली करके वो हमारे क्षेत्र पर दावा ठोकता रहता है, लेकिन गलवान घाटी में चीन की ताजा हिमाकत उसके विस्तारवादी मंसूबों के अंत की शुरुआत बन सकती है। चीन के 59 ऐप्स पर डिजिटल स्ट्राइक, अरबों रु पये के करार तोडऩे और चीन को पाकिस्तान के साथ ‘प्रायर रेफरेंस कंट्री’ की लिस्ट में डालकर मोदी सरकार ने बिल्ली के गले में जो घंटी बांधी है, उसके असर से भारत की अगुवाई में चीन के खिलाफ एक ग्लोबल गठबंधन बड़ी तेजी से आकार लेने लगा है। चीनी कंपनियों को दुनिया भर से बुरी खबरें मिलनी शुरू हो गई हैं। ट्रंप सरकार ने हुआवे और जेडटीई को सुरक्षा वजहों से अमेरिका से अपना कारोबार समेटने का फरमान सुना दिया है। कनाडा ने तो हुआवे के एक अधिकारी को गिरफ्तार भी कर लिया था। हांगकांग, ताइवान, फिलीपींस से चीन का झगड़ा भी आक्रामक होता जा रहा है। इन सबके बीच चीन का ऑस्ट्रेलिया और वियतनाम से भी छत्तीस का आंकड़ा बन गया है। अमेरिका तो अब चीन से सीधे-सीधे टकराव के मूड में दिख रहा है। ट्रेड वॉर और कोरोना के कारण दोनों देशों के रिश्ते पहले से खराब चल रहे थे, वो और बिगड़कर शीत युद्ध वाले दौर के समान हो गए हैं। दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए खतरा बन चुके चीन के कदम को रोकने के लिए अमेरिका यूरोप से अपनी सेना कम करके दूसरी जगहों पर नये सिरे से सैन्य जमावट कर रहा है। प्रधानमंत्री के सिंहनाद के बाद चीन ने जिस मिमियाने वाले अंदाज में दोनों ओर से संयम बरतने की अपील की है, वो तो यही बताता है कि फिलहाल चीन पर नकेल कसने में कामयाबी जरूर हासिल कर ली है।