लेबनान की राजधानी बेरुत में ‘परमाणु बम’ जैसे धमाकों की धुंध बेशक अभी साफ न हुई हो, लेकिन इन धमाकों ने दुनिया को एक साफ संकेत जरूर दे दिया है। यह संकेत दुनिया भर में चल रही टकराहट से आने वाली तबाही की आहट का है।
बेरुत धमाके की जांच अभी जारी है, लेकिन नतीजे से पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘आतंकी हमला बता दिया। हालांकि इस अनुमान के समर्थन में ट्रंप अब तक कोई तर्क या सबूत पेश नहीं कर पाए हैं, लेकिन अपने स्वभाव के विपरीत वो अब तक अपने इस बयान से पलटे भी नहीं हैं। खास बात यह है कि लेबनान के राष्ट्रपति ने भी रॉकेट या बम से हमले की संभावना से इनकार नहीं किया है।
सवाल इस बात का भी है कि हजारों टन का यह विस्फोटक पदार्थ बेरुत ही क्यों लाया गया? क्या इसकी सप्लाई सीरियाई विद्रोहियों को की जानी थी या फिर बेरुत में ही रखकर इसका इस्तेमाल आतंकी हमलों के लिए किया जाना था? वजह जो भी हो, मकसद दुनिया की शांति खतरे में डालना ही है।
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आलम यह है कि मध्य पूर्व में कुल 18 देश हैं और आज यह सब एक-दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं। उस पर तुर्रा यह है इन देशों के बीच शांति बहाल होने की भी दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती। इजरायल को ईरान पसंद नहीं है, इराक को सीरिया नापंसद है, तुर्की-सीरिया में तनातनी है, इजरायल-तुर्की में भी अनबन है, फिलीस्तीन-इजरायल की दुश्मनी जग-जाहरि है तो कुवैत-इराक में भी नफरत का रिश्ता है।
ओमान, जॉर्डन और लेबनान समान रूप से आतंकवाद के शिकार हैं और फिर भी एक-दूसरे की आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। दूसरी तरफ चीन है जो अमेरिका ही नहीं भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ताइवान समेत पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। चीन के खिलाफ एकजुट होने की ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री की गुहार का संदर्भ इसी खतरे से जुड़ता है।
इस खतरे को लेकर दुनिया भारत की ओर भी बड़ी उम्मीद से देख रही है। पिछले आधे दशक में जिस तरह दुनिया में भारत का प्रभुत्व बढ़ा है, उसके बाद कई देश भारत से इस तनाव को दूर करने की गुहार लगाते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भारत ने इस दिशा में कई सार्थक पहल भी की हैं, लेकिन चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की पीठ पर वार करने की नीति ने भारत को भी अपनी सुरक्षा पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर किया है।
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मोदी सरकार बेहद मजबूती से यह संदेश स्थापित करने में कामयाब हुई है कि बुद्ध का देश विरोधियों को सबक सिखाने के लिए युद्ध करने से भी पीछे नहीं हटेगा। ऐसे हालात में जब सुलह-सफाई का दौर बीत चुका है, तब तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत का अंदेशा बहुत पुरानी बात लगने लगा है।
हकीकत यह है कि युद्ध शुरू हो चुका है। दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है, बेरुत जैसी घटनाएं युद्ध का वार्म अप हैं, रीयल एक्शन के लिए शायद एक बड़े धमाके का इंतजार है।