
नई दिल्ली। सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश जारी किया है। अदालत ने घोषणा की है कि सुपरटेक ट्विन टावर्स को ध्वस्त कर दिया जाएगा। सुपरटेक के दोनों टावर 40-40 मंजिला हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक इन गगनचुंबी इमारतों को नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक की मिलीभगत से विकसित किया गया था। अपने आदेश में अदालत ने कहा कि सुपरटेक को तीन महीने के भीतर अपने पैसे से यह तोड़ना होगा और खरीदारों को पैसा ब्याज के साथ वापस करना होगा। आपको याद दिला दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में इन गगनचुंबी इमारतों को गिराने का आदेश दिया था। अब इस फैसले की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने कर दी है।
अदालत ने सुनाया फैसला
इन सुपरटेक इमारतों के 40-40 मंजिला टावरों में 1-1 हजार फ्लैट हैं। कोर्ट के मुताबिक इन गगनचुंबी इमारतों को नियमों के बावजूद बनाने की इजाजत थी। अदालत ने फैसला सुनाया है कि सुपरटेक ट्विन टावर्स में अपार्टमेंट खरीदने वाले लोगों को उनका पैसा और 12% ब्याज वापस किया जाएगा। रिपोर्टों के अनुसार, टावरों को गिराए जाने के दौरान अन्य इमारतों को नुकसान नहीं होना चाहिए। इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह (नोएडा एमराल्ड कोर्ट डिमोलिशन केस) ने की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इन इकाइयों को नोएडा प्राधिकरण के साथ बिल्डर के “नापाक” सहयोग के परिणामस्वरूप बनाया गया था, जिसकी मंजूरी योजना आरडब्ल्यूए को भी नहीं पता थी।
टावरों के निर्माण प्रक्रिया के हर चरण में हुआ भ्रष्टाचार
अदालत ने अपना फैसला सुनाते दौरान कहा कि सुपरटेक के T16 और T17 टावरों के निर्माण से पहले फ्लैट के मालिक और RWA की मंजूरी आवश्यक थी। साथ ही, चेतावनी जारी होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई कि न्यूनतम दूरी आवश्यकताओं के नियमन को तोड़ा गया है। भले ही अदालत ने स्वीकार किया कि बिल्डर की मंजूरी मिलने से पहले ही काम शुरू कर दिया था, लेकिन नोएडा प्राधिकरण ने कोई कार्रवाई नहीं की।
कोर्ट के मुताबिक बिल्डर और अथॉरिटी के बीच संबंध थे। “भ्रष्टाचार प्रक्रिया के हर चरण में मौजूद था। शहर में आवास की जरूरत है, लेकिन इसे पर्यावरण के अनुकूल तरीके से किया जाना चाहिए।”