डायबिटीज़ की शुरुआत रसोईघर से होती है, इसका समाधान भी वहीं से होना चाहिए।” – डॉ. वरुण

लखनऊ | 5 मई 2025
प्रेस क्लब, लखनऊ में आयोजित एक विशेष प्रेस वार्ता में डायबिटीज़ को लेकर चिकित्सा क्षेत्र की पारंपरिक सोच को चुनौती देने वाला महत्वपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण सामने आया। एप्रोप्रियेट डाइट थेरेपी सेंटर के बैनर तले आयोजित इस संवाद में डायबिटीज़ मुक्त भारत अभियान के बारे में जानकारी दी गई, जिसकी शुरुआत भारत गौरव सम्मान प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. एस. कुमार द्वारा की गई है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ. वरुण ने डायबिटीज़ को ‘लाइलाज रोग’ मानने की अवधारणा को खारिज करते हुए इसे एक जीवनशैली जनित “शुगर यूटिलाइज़ेशन डिसऑर्डर” बताया। उन्होंने कहा कि यह रोग बिना दवा और बिना इंसुलिन के केवल सटीक जांच और उचित खानपान से नियंत्रित किया जा सकता है।

डायबिटीज़ की खोज से लेकर आधुनिक निष्कर्षों तक:

डॉ. वरुण ने बताया कि

  • 1921 में सर फ्रेडरिक बैंटिंग और चार्ल्स बेस्ट ने इंसुलिन की खोज की थी।
  • 1936 में हेटाल्ड हिंसवर्थ ने डायबिटीज़ को टाइप-1 और टाइप-2 में वर्गीकृत किया।
  • 1970 में जेफरी फ्लायर और हेरोल्ड ओलेफस्की ने इंसुलिन रेसिस्टेंस के पीछे सेल्यूलर रिसेप्टर डिफेक्ट को मुख्य कारण माना।

डॉ. एस. कुमार के शोध के अनुसार 90% मरीजों को सिर्फ बढ़े हुए शुगर लेवल के आधार पर डायबिटीज़ का गलत डायग्नोसिस दे दिया जाता है, जबकि उनके शरीर में इंसुलिन की मात्रा सामान्य होती है। समस्या शुगर बनने की नहीं, बल्कि उसका उपयोग न हो पाने की है।

दोषी है रसोई में इस्तेमाल होने वाला रिफाइंड तेल:

डॉ. कुमार ने अपने शोध में यह स्पष्ट किया कि रसोई में प्रयोग होने वाले रिफाइंड तेल – जैसे सोयाबीन, सूरजमुखी आदि – जब बार-बार गर्म होते हैं तो वे ट्रांस फैटी एसिड्स, AGES और 30 से अधिक हानिकारक रसायनों का उत्पादन करते हैं, जो:

  • इंसुलिन रिसेप्टर्स को नष्ट करते हैं
  • कोशिकाओं में शुगर के प्रवेश को रोकते हैं
  • इंसुलिन रेसिस्टेंस उत्पन्न करते हैं
  • पैंक्रियाज़ के बीटा सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं

केवल शुगर टेस्ट नहीं, जरूरी हैं विशेष जांचें:

डॉ. कुमार के अनुसार केवल फास्टिंग, पोस्ट मील और HbA1c जांच डायबिटीज़ की सही तस्वीर नहीं देती। उन्होंने 8 विशेष बायोमार्कर्स आधारित जांचों – जैसे फास्टिंग सीरम इंसुलिन, सी-पेप्टाइड, होमा आईआर, बीटा सेल फंक्शन, इंसुलिन सेंसिटिविटी – की अनुशंसा की, जो यह तय करती हैं कि मरीज को वाकई में डायबिटीज़ है भी या नहीं।

सैनिकों ने लिया अभियान से जुड़ने का संकल्प:

इस कार्यक्रम में इंडियन एक्स-सर्विसेज लीग, लखनऊ के अध्यक्ष सुबेदार मेजर (से.नि.) ऋषि दीक्षित, श्री आर.बी. सिंह एवं अन्य पदाधिकारियों ने भाग लिया और डायबिटीज़ मुक्त भारत अभियान को अत्यंत आवश्यक बताया। दीक्षित जी ने कहा, “देश की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए अब स्वास्थ्य की रक्षा का अभियान चलाना हमारा कर्तव्य है। डॉ. कुमार के प्रयासों से जुड़कर हमें गर्व है।”

खानपान से पैदा हुआ रोग, खानपान से ही समाधान:

डॉ. वरुण ने अपने भाषण के समापन में कहा, “यदि रोग खान-पान से पैदा हुआ है, तो उसका समाधान भी खान-पान में है। अब वक्त आ गया है कि डायबिटीज़ के लिए इंसुलिन और दवाओं पर निर्भरता को चुनौती दी जाए और सही वैज्ञानिक डाइट थेरेपी को समाज तक पहुँचाया जाए।”

इस अवसर पर एप्रोप्रियेट डाइट थेरेपी सेंटर लखनऊ की टीम से विनोद अवस्थी, डाइटीशियन ममता पाण्डेय एवं अल्का श्रीवास्तव, और आईटी विशेषज्ञ राज कमल त्रिपाठी भी उपस्थित रहे और कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।