मित्रता अथवा कोई भी रिश्ता सम्मान का ही नहीं भाव का भी भूखा होता है…
बशर्तें लगाव दिल से होना चाहिए ……..
दिमाग से नहीं…..
जो दिल के बहुत करीब होते हैं…….
वो चाहे पास हों या दूर……. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता…
क्योंकि ……
वो दिल में होते हैं…….
और……..
ऐसे सच्चे मित्र…..
ऐसे सच्चे रिश्ते……
बिना कहे……
बिना मिले ……
भी दिल की बात समझ जाया करते हैं…..
लेकिन …….
जहाँ हमने दिमाग लगाया…..
वहीं से दूरी आरम्भ हो जाती है और लगाव समाप्त हो जाता है……..
इसलिए ……..
कुछ रिश्तों को दिल से देखना चाहिए और……
दिल से ही निभाना चाहिए….
आँखे बंद करके हमें अवश्य विचार करना चाहिए……. कि…….
क्या हमारे पास ऐसा कोई मित्र, ऐसा कोई रिश्ता है??……..
या …….
क्या हम ऐसे किसी के मित्र हैं??…..
बन्द आँखों में जो छवि सामने आएगी वही सत्य है…..
बाकी सब मिथ्या है……
हे भगवन……🙏🏻🙏🏻
आपकी छवि हमारे दिल में बसी है…..
आप पास हो या दूर दिल में समाये रहते हैं….
ऐसे ही हर रिश्ता मैत्रीपूर्ण हो जाए ……
तो अलगाव, कटुता, वैमनस्यता, टकराव…………..
स्वतः ही विलुप्त हो जाएंगे……
यही भावना हर हृदय में आए…..
ऐसी प्रार्थना करती हूँ…..
सभी स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें और अपने जीवन को सार्थक करें, यही ईश्वर से प्रार्थना है……..
धन्यवाद…….
मधु अजमेरा
ग्वालियर