12 मार्च 1971 को रिलीज़ हुई थी फिल्म ‘आनंद’
राज कपूर ने दिया था ‘बाबू मोशाय’ शब्द
नई दिल्ली। ‘बाबू मोशाय, जिंदगी और मौत ऊपरवाले के हाथ में है, जहांपनाह, उसे न तो आप बदल सकते हैं और न मैं, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिनकी डोर ऊपरवाले की अंगुलियों में बंधी हैं, कब, कौन, कैसे उठेगा यह कोई नहीं बता सकता है’ आप जब भी यह संवाद सुनते हैं तो आपको फिल्म का नाम और कलाकार दोनों बताने की जरूरत नहीं बचती। फिल्म ‘आनंद’ अपनी भावपूर्ण कहानी और कलाकारों की बेमिसाल अदाकारी के साथ ही बेहतरीन डायलॉग के लिए भी जानी जाती है। राजेश खन्ना जहां आनंद के किरदार में थे, तो अमिताभ बच्चन डॉक्टर भास्कर बनर्जी की भूमिका में थे। आनंद डॉक्टर भास्कर बनर्जी को बाबू मोशाय कहा करते थे।
सन 1971 में कमाये थे 2 करोड़ रुपए
फिल्मी जगत के निर्देशन क्षेत्र में ऋषिकेश मुखर्जी न सिर्फ व्यंग्यात्मक और चुटेले लहजे से संदेश देते थे, बल्कि भरपूर मनोरंजन भी कराते थे। ऋषि दा की एक कालजयी फिल्म ‘आनंद’ को रिलीज हुए आज 50 बरस पूरे हो गए हैं। आनंद को भारतीय सिनेमा की उन बेहद चंद फिल्मों में शुमार किया जाता है, जिसके गानों के ऑडियो कैसेट के साथ-साथ डॉयलाग के कैसेट भी खूब बिके। एक से बढ़कर एक डॉयलाग को सुनने के लिए 90 के दशक में लोग ऑडियो कैसेट खरीदा करते थे। यह फिल्म 1971 में 12 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। उस दौर में यह फिल्म सुपरहिट रही थी और करीब 2 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था। जो अपने आप में किसी फिल्म की रिकॉर्डतोड़ कामयाबी थी।
राजेश खन्ना ने अमर कर दिया ‘आनन्द’
फिल्म आनंद को राजेश खन्ना के उम्दा अभिनय के लिए भी जाना जाता है। कई अन्य महान फिल्मों की तरह इस फिल्म के लीड रोड के लिए राजेश खन्ना पहली पसंद नहीं थे। कहा जाता है कि ऋषिकेश मुखर्जी पहले इस फिल्म की लीड एक्टर के लिए किशोर कुमार को लेना चाहते थे, लेकिन किशोर कुमार के गेटकीपर की गलती की वजह से वो इतने आहत हुए कि उन्होंने अपना फैसला बदल दिया। फिर लीड रोल के लिए महमूद से संपर्क किया गया, लेकिन यहां भी बात नहीं बनी। ऋृषिकेश दा ने राज कपूर और शशि कपूर को भी फिल्म के लिए ऑफर किया। लेकिन, दोनों अपनी-अपनी वजह से फिल्म में काम नहीं कर सके। इसके बाद राजेश खन्ना को लीड रोल के लिए चुना गया, जिन्होंने अपने शानदार अभिनय से फिल्म और किरदार को अमर कर दिया.
राज कपूर के लिए लिखी गई कहानी
फिल्म के लीड एक्टर राजेश खन्ना यानी आनंद सहगल फिल्म में अपने प्रिय दोस्त डॉक्टर भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) को बाबू मोशाय कहकर संबोधित किया करते थे। कहा जाता है कि यह शब्द राजकपूर ने दिया था। राजकपूर, ऋषि दा को ‘बाबू मोशाय’ कहकर संबोधित किया करते थे। ऋषिकेश दा ने राजकपूर को लेकर उस समय फिल्म आनंद लिखी थी, जब वे गंभीर रूप से बीमार पड़े थे और उनके बचने की उम्मीद कम थी। खैर, राजेश खन्ना के हिस्से में यह फिल्म आई और उस किरदार को इस संवाद के साथ अमर कर दिया, ‘आनंद मरा नहीं, आनंद मरते नहीं।’