
उन्नाव रेप केस में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत और सजा निलंबन के आदेश को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। CBI की याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्या कांत, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मामले को अत्यंत गंभीर बताते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के स्पष्ट संकेत दिए।
CBI की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि यह “बेहद भयावह मामला” है, जिसमें घटना के समय पीड़िता की उम्र मात्र 15 वर्ष थी। उन्होंने दलील दी कि ट्रायल के दौरान IPC की धारा 376 और POCSO एक्ट की धारा 5/6 के तहत आरोप तय हुए थे और दोनों ही मामलों में कुलदीप सेंगर को दोषी ठहराया गया। ट्रायल कोर्ट ने स्पष्ट रूप से माना था कि पीड़िता 16 वर्ष से कम उम्र की थी और उसी आधार पर सेंगर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
SG ने बताया कि सजा सुनाते समय ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) के तहत दोषसिद्धि की थी, जो अपराध की तिथि पर कानून में प्रभावी थी। यह बलात्कार का एग्रेवेटेड रूप है, जिसमें न्यूनतम 20 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास, यहां तक कि जैविक आजीवन कारावास तक का प्रावधान है। उन्होंने जोर देकर कहा कि न्याय व्यवस्था 15 साल की उस बच्ची के प्रति जवाबदेह है। SG ने यह भी रेखांकित किया कि कुलदीप सेंगर पीड़िता के पिता की हत्या सहित अन्य मामलों में भी दोषी ठहराया जा चुका है और फिलहाल जेल में बंद है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्या कांत ने सवाल उठाया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में IPC के तहत हुई दोषसिद्धि पर स्पष्ट रूप से विचार क्यों नहीं किया और क्यों ऐसा प्रतीत होता है कि फैसला केवल POCSO एक्ट के आधार पर दिया गया। उन्होंने इसे एक गंभीर कानूनी प्रश्न बताया, जिस पर विस्तार से विचार आवश्यक है।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी ने भी टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(i) पर विचार नहीं किया और सजा निलंबन का एक आधार यह माना कि सेंगर लोक सेवक नहीं है, जबकि इस बिंदु पर भी गहन कानूनी परीक्षण जरूरी था।
बचाव पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एन. हरिहरन और सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि आरोप IPC की धारा 376(1) के तहत तय किए गए थे और अभियुक्त को उसी आरोप का सामना करना था। उन्होंने कहा कि किसी दंडात्मक कानून में दूसरे कानून की परिभाषा को स्वतः लागू नहीं किया जा सकता और अब यह कहना कि विधायक व्यापक अर्थ में लोक सेवक है, बहुत देर से उठाया गया तर्क है। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि कुलदीप सेंगर लगभग 10 वर्ष की सजा पहले ही काट चुके हैं।
इस पर चीफ जस्टिस सूर्या कांत ने कहा कि मामला विचार योग्य है। सामान्य सिद्धांत यह है कि यदि किसी को रिहा किया जा चुका हो तो उसे सुना जाए, लेकिन इस मामले में सेंगर अभी भी हिरासत में है। पीठ ने संकेत दिए कि वह दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए सजा निलंबन और जमानत आदेश पर रोक लगा सकती है।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है और अगली तारीख पर इस महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न पर विस्तृत आदेश पारित किए जाने की संभावना है।