विद्वान सर्वत्र पूज्यते : ‘राम का पटवारी’ ही है ‘अयोध्या की एनसाइक्लोपीडिया’

“ये राम की वानर सेना है, जो करने आई है, करके ही जाएगी”

सुमंगल दीप त्रिवेदी

नई दिल्ली। साल था 1975। देश में 25 जून की मध्यरात्रि से तत्कालीन प्रधामनंत्री इँदिरा गाँधी के इशारे पर उस समय देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी।

आपातकाल की घोषणा होते ही पूरे देश में गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया था। इन्हीं, गिरफ्तारियों में एक ऐसा भी सख़्श गिरफ्तार हुआ था, जिसकी चर्चा आज लुटियन्स दिल्ली की अजीमोशान इमारतों से लेकर दूरस्थ गाँव की गलियों तक है।

दरअसल, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर.एस.एम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे, तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय वह प्रोफेसर अच्छी तरह जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है। पुलिस को भी अनुमान था कि, छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।

ऐसे में उन प्रोफ़ेसर ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये मैं बच्चों की क्लास खत्म करके थाने आ जाऊँगा। पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे, अतः वे लौट गए। क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर घर पहुँचे, अपने माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए। आप जानते हैं, यह प्रोफेसर कौन थे? नाम था “चंपत राय”। जी हाँ, वही चंपत राय जिनकी निश्छलता, देशसेवा और कर्मठता पर आज विरोधी पार्टियां झूठे आरोपों की गंदगी उछालने जुटी हुई हैं।

18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बहुत ही कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब चंपत राय बाहर निकले, तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक रज्जू भैया ने पहचाना और श्री राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।

चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को लात मार दी और राम काज में जुट गए। वे अवध के गाँव-गाँव गये हर द्वार खटखटाया। स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी। अयोध्या के हर गली-कूँचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया।

उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें “अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया” उपनाम से बुलाने लगे।

बाबरी मस्जिद विध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय ने राम मंदिर पर “डॉक्यूमेंटल एविडेंस” जुटाने प्रारम्भ किये। लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक-एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला। उनका घर इन कागजातों से भर गया, साथ ही हर जानकारी उन्हें कंठस्थ भी हो गई। के. परासरण और अन्य साथी वकील जब जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।

अब आते हैं 6 दिसंबर 1992। इस दिन मंच से बड़े-बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे। तमाम निर्देश दिए जा रहे थे। बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं, उस समय चंपत राय मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे। एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा “अब क्या होगा?” उन्होंने हँस कर उत्तर दिया “ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी…ये जो करने आयी है, करके ही जाएगी।”

इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और इतिहास रच गया।

चंपत राय को यूं ही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है। उन्होंने रामलला के श्रीचरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग “रामलला का पटवारी” भी कहते हैं। चंपत राय सनातन धर्म के योद्धा हैं।

बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िम्मेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे”।

चंपत राय जी धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और विद्वान हैं। एक बार वे किसी काम से काशी में किसी के यहां रुके, तब रात्रि में देखा तो पाया कि बेड का डायरेक्शन कुछ ऐसा था कि सोते हुए पैर दक्षिण की तरफ हो जा रहे थे, उन्हें एक रात को भी यह स्वीकार नहीं था, रात में ही उन्होंने बैड का डायरेक्शन ठीक करवाया, तभी सोए।

जो धोती कुर्ता पहनकर भारत का गाँव-गाँव नापने वाला व्यक्ति अपने निजी जीवन में हिन्दू जीवनचर्या की छोटी-छोटी बातों का हठ के साथ पालन करता है, वह श्रीराममंदिर के संदर्भ में किस हद तक विचारशील और जुझारू होगा, समझा जा सकता है।

विपक्ष के आरोपों ने भले ही सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक खूब साख बटोरी हो, लेकिन रामकाज करने वाले वृद्ध का कुछ भी बिगाड़ पाना किसी के बस में नहीं, क्योंकि, “जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करहि सब कोई”।।

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