पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना ने बीस से अधिक ऊंची पहाडिय़ों पर कब्जा कर वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर अपनी सामरिक बढ़त बना ली है।
यह ऊंची पहाडिय़ां पैंगोंग झील के निकट टकराव वाले क्षेत्रों के आसपास ही हैं, जिस पर चीनी सेना की नजर पडऩे से पहले ही भारतीय सेना ने कब्जा जमा लिया।
यह भारतीय सेना की दूरदृष्टि और तत्परता का सुखद परिणाम है । फिंगर-4 के आसपास मागर हिल, गुरूंग हिल, रेशेनला, रेजांगला, मोरवपरी जैसी पहाडिय़ों पर सामरिक बढ़त बनाने से भारतीय सेना मजबूत स्थिति में आ गयी है।
ऊंची चोटियों पर नियन्त्रण कायम होने से चीन की साजिशों को नाकाम करने में काफी सहायता मिलेगी। चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच भारतीय सेना का यह कदम सराहनीय है। इन चोटियों से चीनी सेना की हरकतों पर नजर रखने में सुविधा होगी। सभी चोटियां वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सीमा में स्थित है।
चीन इन चोटियों पर कब्जा करना चाहता था। भारतीय वायुसेना भी लद्दाख क्षेत्र में कड़ी निगरानी कर रही है और उसने राफेल विमानों से उड़ाना भी भरी हैं। सुखोई और मिराज विमानों की तैनाती पहले से ही है। वायुसेना पूरी तैयारी के साथ मोर्चे पर डटी हुई है। सीमा पर तनाव है लेकिन स्थिति नियन्त्रण में है।
तनाव कम करने की दिशा में दोनों देशों के बीच सोमवार को चीनी क्षेत्र माल्डो में अब तक के सबसे बड़े प्रतिनिधिमण्डल के साथ वार्ता हुई, जिसमें भारत की ओर से दो लेफ्टिनेण्ट जनरल, दो मेजर जनरल, चार ब्रिगेडियर,आईटीबीपी के आईजी के अतिरिक्त विदेश मंत्रालय के एक संयुक्त सचिव भी शामिल हैं।
यह पहला अवसर है जब विदेश मंत्रालय के बड़े अधिकारी शामिल हुए हैं। कोर कमाण्डर स्तर की इस छठी वार्ता में भारत पूरे क्षेत्र से चीनी सैनिकों के पीछे हटने पर जोर दे रहा है। पिछले दिनों भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच मास्को में हुई बैठक में पांच बिन्दुओं पर सहमति बनी थी लेकिन उसके अनुरूप दोनों देशों की सेनाएं पीछे नहीं हटी और एक-दूसरे के सामने डटी हुई हैं।
इसमें चीन की हठधर्मिता और चालबाजी से सकारात्मक प्रगति नहीं हो पा रही है। माल्डो की बैठक से भारत-चीन विवाद सुलझाने में कितनी सहायता मिलेगी, यह अनिश्चित है, क्योंकि जब तक चीन अपनी कथनी के अनुरूप करनी को मूर्त रूप नहीं देगा, तब तक बात नहीं बनने वाली है।
वहीं, कूटनीतिक स्तर पर चीन की नकल कसने के लिए अब भारत नई रणनीति पर काम कर रहा है। इस मसले पर उसे जापान का साथ मिला है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों यह कहकर इसकी तस्दीक कर दी कि भारत तीसरे देशों से साझेदारी के व्यावहारिक पहलुओं पर विचार कर रहा है।
गौरतलब है कि भारत और जापान के पास रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र एवं प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों में साथ काम करने का अवसर है। चीन की विस्तारवादी नीति पर आक्रमण करने और उसे अपनी हद में रहने के लिए भारत और जापान दक्षिण एशिया के देशों बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार के साथ मिलकर काम करेंगे।
इसमें न केवल यहां की परियोजनाएं शामिल होंगी बल्कि आर्थिक निवेश से लेकर ढांचागत बुनियादी सुविधाएं खड़ा करना भी शामिल होगा। स्वाभाविक रूप से दोनों देश (भारत और जापान) इस इलाके में तभी मजबूत होंगे जब दक्षिण एशिया के छोटे देश विकास के मामले में तरक्की करेंगे।